SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समरसिंह। श्री देवऋद्धिश्रमणजीने भी प्राचार्य श्री देवगुप्तसूरिसे एक पूर्व सार्थ और अर्द्ध पूर्व मूल, १३ पूर्व का ज्ञान प्राप्त किया । जिस देवऋद्धि महाराजने जैन सूत्रों को पुस्तक बद्ध किया था उन्हींके माधार पर आज जैन साहित्य अपने पैरों पर खड़ा है। यहाँ तक तो इस गच्छ में उपर्युक्त पांचों नाम से आचार्योंकी परम्परा चली आ रही थी। कालान्तर में मारोट कोट नगर में एक धनकुबेर सोमक नामक श्रेष्ठि रहते थे । उन के किसी शत्रु के बहकाये जानेपर वहां के राजाने इन्हें हवालात में रख बेड़ियों पहना कर बन्दीगृह में डाल दिया था। इन्होंने इस विपदकाल में आचार्य श्रीकक्कसूरि का ध्यान किया जिस के परिणाम स्वरूप इन की बेड़ियें टूट गई तथा बन्दीगृह के दरवाजो के ताले अपने आप खुले १ पैंतीसवें पट्टपर प्राचार्य देवगुप्तसूरिजी हुए हैं जिनके पास श्रीदेवऋद्धि गणि क्षमाश्रमणजीने २ पूर्व पढ़े थे । ___-जैनधर्मविषयक प्रश्नोत्तर, प्रश्न ८० विजयानंदमूरि तत्पट्ट आचार्यश्री देवगुप्तमूरि महान् प्रभाविक हुए । ये दो पूर्वधारी अनेक साधु साध्वियोंको ज्ञानदान देते थे। श्री देवऋद्धिक्षमाश्रमणजी एक पूर्वसार्थ और आधापूर्व मूल पढ़े थे।-उपकेशगच्छ पट्टावली १ तत. प्रभृति प्रत्यक्ष देवी नायाति सत्यक । कार्यकाले सदाधत्ते सांति ध्यं गच्छ वासिनां । ४३३ तत्पट्टे कक्कसूरि द्वादशवर्षे यावत् षष्ट तपं आचाम्ल सहितं कृतवान् तस्य स्मरणस्तोत्रेण मारोटकोट सोमवेष्टिभ्य शृंखला त्रुटितः ( उपकेशगच्छ पावली)
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy