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________________ उपकेशगच्छ परिचय | शांति प्राप्त की । आपके जीवन पर कई स्वतंत्र ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं अत: हम यहाँ पर इतना ही लिखना उपयुक्त समझते हैं कि उन्होंने जिस कल्याणपथ का ज्ञान जनताको कराया उसके हम पूर्ण आभारी हैं। आज भी अनेक भव्य जीव उनके उपदेशोंके अनुसार अपना जीवन बिताकर आत्मकल्याण कर रहे हैं ! भगवान् श्री पार्श्वनाथ के प्रथम पट्टपर आचार्य श्री शुभदत्त गणधर हुए। दूसरे पट्टपर प्राचार्य श्री हरिदत्तसूरि हुए जिन्होंने स्वस्ति नगरीमें वेदान्ती लोहित्याचार्य को शास्त्रार्थ में प्रेमपूर्वक समझाकर उन्हें ५०० शिष्यों सहित दीक्षित कर जैन बनाया । नव - दीक्षित लोहित्याचार्यने महाराष्ट्र तैलंगादि प्रान्तों में विहार कर यज्ञहिंसा आदि को मिटाते हुए जैन-धर्म का खूब प्रचार किया । तीसरे पट्टपर आचार्य श्री आर्यसमुद्रसूरि हुए । आप भी अहिंसा धर्म के प्रचार में खूब सफलीभूत हुए । आपके शासन 1 पशु-हिंसा' प्राजकल नहीं होती है, जैनधर्मने यह एक बड़ी मारी छाप ब्राह्मणधर्म पर मारी है । पूर्वकाल में यज्ञके लिये असंख्य पशु हिंसा होती थी । इसके प्रमाण मेघदूत काव्य तथा और भी अनेक ग्रन्थोंसे मिलते हैं । रन्तिदेव नामक राजाने जो यज्ञ किया था उसमें इतना प्रचुर पशु वध हुआ था कि नदीका जल नसे रक्तवर्ण हो गया था ! उसी समयसे नदीका नाम चर्मण्वती प्रसिद्ध है । पशुवधसे स्वर्ग मिलता है, इस विषय में उक्त कथा साक्षी है ! परन्तु इस घोर हिंसाका ब्राह्मण-धर्मसे विदा ले जाने का श्रेय ( पुण्य ) जैन धर्मके हिस्से में है । स्व० लोकमान्य बालगंगाधर तिलक । १ देखो - जैन जाति - महोदय । प्रकरण तीसरा पृष्ठ ३.
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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