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________________ ४. प्रकरण साहित्य : नूतन रचना आगम ग्रंथों की संख्या सीमित हैं। आगम ग्रंथ के आधार पर नूतन ग्रंथों की रचना विशाल संख्या में हुई है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री पादलिप्तसूरिजी म., श्री उमास्वातिजी म., श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्री हेमचन्द्रसूरिजी म., श्री चन्द्रप्रभसूरिजी म., श्री नेमिचन्द्रसूरिजी म., श्री मुनिचन्द्रसूरिजी म., श्री जिनवल्लभसूरिजी म., श्री जिनदत्तसूरिजी म., श्री यशोदेवसूरिजी म., श्री विनयविजयजी म., श्री यशोविजयजी म. आदि अनेक ग्रंथकारों ने अपने-अपने समय में नूतन ग्रंथ रचना की थी। __ दिगंबर परंपरा में श्री गुणधर जी, श्री पुष्यदंत-भूतबलिजी, श्री कुंदकुंदाचार्य, श्री उमास्वामिजी, श्री वट्टकेरजी, श्री शिवार्यजी, श्री समंतभद्रजी, श्री देवसेनजी आदि अनेक ग्रंथकारों ने अपने-अपने समय में नूतन ग्रंथ रचना की थी। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने नूतन ग्रंथ रचना की है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री लब्धिसूरिजी म. १. तत्त्वन्यायविभाकरः २. तत्त्वन्यायविभाकर-टीका ३. सूत्रार्थमुक्तावलिः ४. सूत्रार्थमुक्तावलि-टीका २. श्री आनंदसागरसूरिजी म. १. तत्त्वार्थपरिशिष्टम् २. ईर्यापथपरिशिष्टम् ३. दृष्टिसंमोहविचारः ४. द्रव्यबोधत्रयोदशी ५. द्वेषजयद्वादशिका ६. धर्मतत्त्वविचारः ७. धर्मास्तिकायादिविचारः ८. निसर्गदशी ९. नयानुयोगाष्टकम् १०. प्रव्रज्याविधानकुलकम् ११. मंगलविचारः १२. लोपकपाटीशिक्षा
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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