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________________ १३८ जैन कथा कोष ... चीखने लगी, लेकिन उसकी चीख-पुकार को सुनने वाला वहाँ कौन था? सार्थ तेजी से चल दिया। रास्ते में बनजारे ने मलया को अपनी बनाने के सभी प्रयत्न कर लिये, लेकिन वह अपने सतीत्व पर अडिग रही। आखिर में बनजारे ने सोचाअब यह मेरे चंगुल से निकल तो सकती नहीं, जाएगी कहाँ? एक-न-एक दिन इसे मेरी बात माननी ही पड़ेगी। कभी-न-कभी तो यह समर्पण करेगी ही। तब तक मैं प्रतीक्षा करूँगा। रानी मलया ने भी मन में निर्णय कर लिया—परिणाम कुछ भी हो, मैं अपने सतीत्व से नहीं डिगूंगी। वह पंचपरमेष्ठी का ध्यान करते हुए सात्विक जीवन बिताने लगी तथा बनजारा उसके समर्पण की प्रतीक्षा करने लगा। दिन बीतते रहे। इधर संध्या तक जब मलया घर नहीं पहुँची तो राजा चन्दन चिन्तित हो गया। दोनों बालक सायर-नीर तो माँ की याद में विह्वल हो गये। रात में ही तीनों मलया की तलाश में निकल पड़े। नगर पीछे रह गया और वे वन में आ गये। वन के फल-फूल खाते हुए मलया की खोज में आगे बढ़ते रहे। . लेकिन मार्ग में एक बाधा आ गयी। वे एक बरसाती पहाड़ी नदी के किनारे जा पहुँचे। आगे बढ़ने के लिए नदी को पार करना जरूरी था और नदी उस समय उफान पर थी। राजा चन्दन बहुत देर तक नदी पार करने के उपायों के बारे में सोचता रहा, पर उसे एक भी उपाय ऐसा न सूझा कि वह दोनों पुत्रों के साथ नदी पार कर सके। अन्त में उसने निर्णय किया कि एक-एक पुत्र को लेकर नदी पार करनी चाहिए। नदी में कहीं पानी अधिक न आ जाये और किनारे बैठे पुत्र को बहा न ले जाये, इसलिए उसने सायर को एक वृक्ष के तने से बाँधा और नीर को पीठ पर बिठा तैरकर नदी के दूसरे किनारे पर पहुँच गया। वहाँ नीर को भी एक वृक्ष से बाँधकर पुनः लौटा, लेकिन तब तक नदी का वेग बहुत बढ़ चुका था, राजा चन्दन थका हुआ भी था। इसलिए वह धारा के विपरीत न तैर सका और बहने लगा। उसने बहुत हाथ-पैर चलाए, पर नदी के तीव्र वेग के सम्मुख उसकी एक न चली। वह बहता ही चला गया। देवयोग से एक बहता हुआ तना उसके हाथ आ गया। राजा चन्दन ने उसे पकड़ लिया और उसके सहारे बहता रहा। जब समतल भूमि आ गयी तो नदी का वेग कुछ कम हुआ। राजा चन्दन
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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