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________________ તપશ્ચર્યા ५४२५ - ६ भयभीत व्यक्ति मन और संयम की साधना छोड़ देता है। वह किसी भी ........... को नहीं नित्य करता है २५. बलं थामं च पेहाए, सद्धामारोग्गमप्पणो । खेत्तं कालं च विनाय, तहप्पाणं निजुं जए ॥ - दशवैकालिक ८/३५ अपना बल, दृढ़ता, श्रद्धा, आरोग्य तथा क्षेत्रकाल को दखकर आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिये। २६. तवस्स मूलं विती । - निशीथ चूणि ४ तप का मूल धृति अर्थात् धैर्य है। २७. यत्र तपः तत्र नियमात्संयमः ।। यत्र संयमः तत्रापि नियमात् तपः । ___ - निशीथ चूर्णि ३३२२ जहाँ तप है वहाँ नियम से संयम है, और जहाँ संयम है वहाँ नियम से तप है। तप के प्रकार : २८. सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरभितरो तहा। बाहिरो छव्विहो वुत्तो, एव मभितरो तवो ॥ - उत्तराध्ययन सूत्र ३०/७ तप दो प्रकार का है - बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य तप अनशन आदि छः प्रकार का है, एवं आभ्यंतर तप के प्रायश्चित आदि छः भेद है। २९. अणसण मूणोयरिया, भिक्खायरिया य पसपरिच्चाओ। कायकिलेसो, संलीणया य वज्झो तवो होई ॥ पायच्छितं, विणओ, वेयावच्चं तहेव सम्जाओ । जाणं च विउसग्गो एसो अभितरो तवो ॥ - उत्तराध्ययन ३०१८-१०
SR No.023263
Book TitleTapascharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanmuni
PublisherAjaramar Active Assort
Publication Year2014
Total Pages626
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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