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________________ તપશ્ચર્યા ૬.૧ તપ સૂક્તમ્ परिभाषा २. ३. ४. ५. ६.. तापयति अष्टप्रकारं कर्म इति तपः । પ્રકિર્ણ तप-सूक्त जैन वाड्मय में 'तप' जो आठ प्रकार के कर्मो को तपाता है, इसका नाम तप है । तप्यते अणेण पावं कम्ममिति तवो । - - निशीथचूर्णि ४६ - आवश्यक मलयगिरि खण्ड २ अ० १ जिस साधना से पाप कर्म तप्त होता है, वह तप है । इच्छा निरोधस्तपः । — - उमास्वाति, तत्वार्थसूत्र अपनी इच्छाओं की नियंत्रण में लाना तप है 1 देहदुक्खं महाफलं । दशवैकालिक ८ देह का दमन करना तप है, वह महान् फलपद है । भव कोडियं संचियं कम्मं । तवसा निज्झरिज्जइ उत्तराध्ययन १०/१६ कोटि-कोटि भवों के संचित कर्म तपस्या की अग्नि में भस्म हो जाते है । नो पूयणं तवसा आवहेज्जा । सूत्रकृतांग ७/२७ तप के द्वारा पूजा-प्रतिष्ठा की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए । ४८२ પ્રકરણ - ६
SR No.023263
Book TitleTapascharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanmuni
PublisherAjaramar Active Assort
Publication Year2014
Total Pages626
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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