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________________ सांस्कृतिक वैभव का ज्ञान होता है। इन क्षेत्रों की वंदना व दर्शन करने से हम अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासतों से तो परिचित होते ही हैं; हमें असीम मानसिक शान्ति का भी अनुभव होता है, पुण्य लाभ तो मिलता ही है, विभिन्न राजवंशों के समय जन्मी शिल्प-परंपराओं के भी दर्शन होते हैं। इस समग्र जैन सांस्कृतिक वैभव के विनिर्माण एवं दीर्घावधि तक उसको संरक्षित व संवर्धित करने का श्रेय अधिकांशतयः तत्कालीन जैन समाज को जाता है । मंदिरों में स्थित तैलचित्रों, भित्तिचित्रों आदि के माध्यम से भी हम अपनी प्राचीन विरासत से परिचित होते हैं । इन तीर्थ क्षेत्रों में वर्तमान में विद्यमान विपुल प्राचीन शास्त्र भंडारों का लाभ शोधार्थी प्राप्त कर सकते हैं । विद्वतजन व श्रमण तो इनसे लाभ लेते ही रहते हैं । ये तीर्थ क्षेत्र साधकों की साधना के दुर्लभ केन्द्र भी हैं। ये तीर्थ क्षेत्र पूर्व में या तो तीर्थंकरों की देशना स्थलियां रहीं हैं या यहां रहकर आचार्यों, उपाध्याओं, साधुओं व श्रावकों ने त्याग व तपस्या का मार्ग अपनाकर अपने जीवन को धन्य किया है। कुछ ने तो तीर्थ क्षेत्रों में रहकर ही मुक्ति लक्ष्मी का वरण किया है। इन तीर्थ क्षेत्रों में रहकर ही इन महापुरुषों ने संसार के सभी प्राणियों को मोक्ष मार्ग पर चलने को प्रेरित किया था। ये तीर्थ क्षेत्र आज भी परम सुख व शान्ति का मूक संदेश जन-जन तक पहुँचा रहे हैं व आस्था के प्रमुख केन्द्र बने हुए हैं । बुंदेलखंड के तीर्थ क्षेत्रों में सिद्धक्षेत्र, अतिशय क्षेत्र, देशना क्षेत्र, साधना क्षेत्र आदि हैं। अधिकांश जैन तीर्थ शहरों की भागमभाग व भीड़भरी जिंदगी से दूर, किन्तु प्राकृतिक परिवेश से परिपूर्ण शान्त व सुरम्य पर्वतों, नदी तटों, वन्य परिवेश व पर्वतीय लहटियों आदि में स्थित हैं । इन तीर्थ क्षेत्रों में यात्रियों व दर्शनार्थियों के लिए आधुनिक से आधुनिकतम सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां ठहरने, भोजन, परिवहन व संचार की सुविधाएं उपलब्ध हैं । श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे निरन्तर इन तीर्थ क्षेत्रों की वंदना कर अपने जीवन को धन्य बनाते रहें व इन तीर्थ क्षेत्रों की पहचान को बनाये रखने के लिए यथाशक्ति दान देते रहें । 1 पुस्तक में कुछ तीर्थ क्षेत्रों के चित्र भी देने का प्रयास किया गया है। यात्रियों की सुविधा के लिए कुछ मानचित्र भी दिये गये हैं । तीर्थ क्षेत्रों पर उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी देने का प्रयास भी किया गया है। पुस्तक के अंत में चौबीस तीर्थंकरों की जन्म भूमियों का वर्णन भी किया गया है; ताकि श्रद्धालु इन तीर्थों के दर्शनों की ओर अधिक से अधिक उन्मुख हों । प्रस्तुत पुस्तक के लेखन में 'मध्यप्रदेश के जैन तीर्थ क्षेत्र' पुस्तक का भी 4 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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