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________________ सम्प्रति कतिपय विद्वानों को छोड़कर अन्य सभी विद्वानों ने इस बात को एक स्वर से स्वीकार किया है कि जिनेश्वरसूरि ही खरतरगच्छ के प्रवर्तक हैं। इन विद्वानों में आचार्य हरिसागरसूरि, आचार्य मणिसागरसूरि, आचार्य आनन्दसागरसूरि, आचार्य कवीन्द्रसागरसूरि, उपाध्याय लब्धि मुनि, मोहनलाल दलीचन्द देसाई, मुनि जिनविजय, मुनि कान्तिसागर, आचार्य उदयसागरसूरि, अगरचन्द नाहटा, प्रवर्तिनी साध्वी श्री सज्जनश्री, पं० लालचन्द भगवान दास गांधी, डा० जेटली, गणि मणिप्रभसागर, भंवरलाल नाहटा, महोपाध्याय विनयसागर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। विस्तार-मय से हम यहाँ केवल महोपाध्याय विनयसागर का अभिमत ही उल्लेखित करते हैं खरतरगच्छीय परम्परा के अनुसार खरतर-विरुद जिनेश्वराचार्य को तत्कालीन राजा दुर्लभराज द्वारा दिया गया था। इस बात को लेकर बहुत निराधार विवाद चला है, परन्तु मेरी समझ में इसमें विवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। राजा ने यह विरुद दिया हो अथवा न दिया हो, आचार्य जिनेश्वर की विचारधारा की वह मूलभूत विशेषता जिसके कारण इस विरुद की कल्पना की जा सकती है, जनता के हृदय पर अवश्य ही अपना प्रभाव जमा चुकी होगी और उसीके फलस्वरूप जनता ने उनका जो नामकरण किया वह समाज के मस्तिष्क पर अमिट अक्षरों में लिख गया। इसलिए समाज के मानस-पटल पर आचार्य जिनेश्वर के सुधारवाद की खरतरता ने जो प्रभाव डाला, उसकी स्थायी अभिव्यक्ति होना निश्चित था ।' खरतरगच्छ का उद्भव-काल. खरतरगच्छ का जन्म ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ। श्वेताम्बरगच्छों में यह सर्वाधिक प्राचीन है। श्री अगरचन्द नाहटा जैसे मूर्धन्य १ वल्लभ-भारती, पृष्ठ २७ -- ७१
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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