SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुए। इस चतुर्विध संघ का वर्णन पट्टावलियों में सविस्तार वर्णित है। जिनेश्वरसूरि ने "युगप्रधानाचार्य गुर्वावली" आदि पट्टावलियों में संघ में भाग लेने वाले व्यक्तियों, उनके द्वारा किये गये कार्यों और आय-व्यय के सम्बन्ध में एतिहासिक जानकारी दी है। उसके बाद सं० १३२८ बैशाख शुक्ला चतुर्दशी के दिन जालोर में आपकी निश्रा में श्रेष्ठि क्षेम सिंह ने चन्द्रप्रभस्वामी की बड़ी मूर्ति की, महामन्त्री पूर्ण सिंह ने ऋषभदेव प्रतिमा की और मन्त्री ब्रह्मदेव ने महावीर प्रतिमा की प्रतिष्ठा का महोत्सव किया। ज्येष्ठ कृष्णा ४ के दिन हेमप्रभा को साध्वी वनाया। सं० १३३० बैशाख कृष्णा ६ को गणि प्रबोधमूर्ति वाचनाचार्य को पद और गणिनी कल्याण ऋद्धि को प्रवर्तिनी का पद दिया। तदनन्तर बैशाख कृष्णा अष्टमी को सुवर्ण गिरि में चन्द्रप्रभ स्वामी की बड़ी प्रतिमा की स्थापना चैत्य के शिखर में की। एक दिन जिनेश्वरसूरि ने अपना निधन-काल निकट जानकर वाचनाचार्य प्रबोधमूर्ति को सं० १३३१ आश्विन बदि पंचमी को अपने पाट पर स्वहस्त से अभिषिक्त कर उनका नाम जिन प्रबोधसूरि दिया। अनेक प्रकार से शासन-प्रमावना करते हुए सं० १३३१, आश्विन कृष्णा ५ (६ का भी उल्लेख मिलता है ) को आपका स्वर्गवास हो गया । प्राप्त उल्लेखानुसार जिनेश्वरसूरि की अन्त्येष्टि-भूमि पर श्रेष्ठि क्षमसिंह ने एक विशाल स्तूप बनवाया था। साहित्य :-आचार्य जिनेश्वरसूरि ने जिस प्रकार अपने जीवन में अनेक दीक्षाएँ और प्रतिष्ठाएँ कराई, उसी प्रकार उन्होंने अनेक ग्रन्थ भी निबद्ध किये थे। उनका निम्न साहित्य प्राप्त है : १. श्रावकधर्म विधिप्रकरण २. आत्मानुशासन ३. द्वादशभावनाकुतक २३८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy