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________________ २. नवकार-स्तव (किं किं कप्पतरू), स्तुतिपरक रचना, पद्य संख्या १३ उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त दो अन्य कृतियों के नाम मात्र प्राप्त हुए हैं, जिनका उल्लेख चर्चरी टीका में हुआ है। १. आगमोद्धार और २. प्रचुरप्रशस्ति जिनवल्लमसूरि द्वारा लिखित साहित्य में प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतम् और शृङ्गार-शतक ये दोनों कृतियां साहित्यिक तत्वों की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं और पहला तथा प्रसिद्धि की दृष्टि से सार्द्धशतक, षडशीति एवं पिण्डविशुद्धि है। इनके साहित्य पर अनेक विद्वानों ने व्याख्या-ग्रन्थ लिखे हैं। महोपाध्याय विनयसागर का अभिमत है कि जिनवल्लभसूरि की मृत्यु के लगभग तीन वर्ष उपरान्त से लेकर शताब्दियों पर्यन्त तक इनके ग्रन्थों पर जितनी टीकायें लिखी गयी उतनी सम्भवतः किसी भी जैनाचार्य की कृतियों पर नहीं।' जिनवल्लम-साहित्य पर आचार्य धनेश्वरसूरि, हरिभद्रसूरि, यशोदेवसूरि, मलयगिरि जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने भी टीका अर्थात् व्याख्या ग्रन्थ लिखे। जिनवल्लम साहित्य पर व्याख्यायित प्रन्थ निम्नानुसार हैं१. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार ( साध शतक ) भाष्य, अज्ञात २. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार टिप्पण, टिप्पणकार रामदेवगणि ३. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार चूर्णि, चूर्णिकार मुनिचन्द्रसूरि ४. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार वृत्ति, वृत्तिकार धनेश्वराचार्य ५. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार वृत्ति, वृत्तिकार महेश्वराचार्य ६. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार वृत्ति, वृत्तिकार हरिभद्रसूरि ७. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार वृत्ति, वृत्तिकार चक्रेश्वराचार्य ८. सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार प्राकृतवृत्ति, वृत्तिकार अज्ञात १. सूक्ष्मार्थ विचार-सारोद्धार टिप्पणक, टिप्पणकार अज्ञात १०. आगमिकवस्तुविचार सार (षडशीति) भाष्य, भाष्यकार अज्ञात १ पल्लम-भारती, पृष्ठ १३७
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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