SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाति ज्ञाति कदाग्रहो न च न व श्राद्धेषु ताम्बूलमि त्याना त्रेयमनिश्रिते विधि कृते श्री जैन चैत्यालये 11 1 अर्थात् इस मन्दिर में उत्सूत्रभाषी व्यक्तियों का आवागमन / व्यवहार नहीं होगा, रात्रि में स्नात्र महोत्सव भी नहीं होगा । साधुओं का ममता भाव / अधिकार इस मन्दिर में नहीं होगा, न रात्रि में स्त्रियों का प्रवेश । ज्ञाति जाति का दुराग्रह भी नहीं होगा अर्थात् किसी जाति-ज्ञाति का आधिपत्य इस मन्दिर पर नहीं रहेगा और इस मन्दिर में श्रावक लोग परस्पर ताम्बूल का आदान-प्रदान व भक्षण नहीं करेंगे। इस प्रकार की ये शास्त्र विहित आज्ञायें किसी की निश्रा रहित और विधिपूर्वक स्थापित इस जैन मन्दिर में परवर्ती काल में भी रहेगी । अभिप्राय यह है कि इस विधि का पालन करना चाहिये, जिससे धर्म क्रिया मुक्ति-साधक बने । तदनन्तर जिनवल्लभ ने आशिका नगरी की ओर विहार किया। वे आशिका नगरी से तीन कोश पूर्व माइयड़ नामक ग्राम में जाकर ठहर गये और एक व्यक्ति को पत्र देकर अपने गुरु के पास भेजा, जिसमें लिखा था - आपकी कृपा से सद्गुरु आचार्य अभयदेवसूरि से सिद्धान्त वाचना ग्रहण करके मैं माइयड़ ग्राम में आया हूँ । आप कृपाकर यहीं पधारकर मुझसे मिलें । पत्र पढ़कर जिनेश्वराचार्य ने विचार किया कि जिनवल्लभ को यहां आना चाहिये था। मुझे वहाँ बुलाने जैसा अनुचित कार्य उसने किसलिये किया ? खैर ! दूसरे दिन जिनेश्वराचायें अनेक नागरिकों के साथ अपने प्रिय शिष्य से मिलने के लिये माइयड़ ग्राम पहुंचे। जिनवल्लभ गुरु का स्वागत करने सामने गये और वन्दना की। गुरु ने क्षेमकुशल पूछा। जिसका उन्होंने समुचित उत्तर दिया । इसी समय वहाँ एक ब्राह्मण आया । और उसने ज्योतिष की कई समस्याओं को उपस्थित किया। जिनवल्लभ द्वारा उनका सम्यक् समाधान देखकर १४६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy