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________________ उठे, झुंझला उठे । अकुलाहट और झुंझलाहट - तब तक कुछ करिश्मा पैदा नहीं करती, जब तक उसके साथ आत्म-शक्ति, अन्तःस्फूर्ति, अन्तर-ज्योति कुछ करना तो दूर रहा, वह अकुलाहट अपने संवाहक बुझा भी डालती है । - का सम्बल न हो । की अन्तश्चेतना को जिन महापुरुषों की हम बात करने जा रहे हैं, उनमें अन्तर - ज्योति की तीव्रता / प्रखरता थी । अतएव उनकी आकुलता ने एक ऐसी क्रान्ति का सर्जन किया, जिसने धार्मिक - जगत को सहसा झकझोर डाला । उन्होंने निम्नगामी प्रवहणशीला धारा को रोका ही नहीं, अपितु उसे ऊर्ध्वगामी भी बनाया । यह ऊर्ध्वं गामिता वस्तुतः जैनधर्म के वास्तविक स्वरूप तक पहुँची । वास्तव में खरतरगच्छ एक क्रान्तिकारी आन्दोलन है, जैनधर्म का सुधारवादी प्रातिनिधिक आम्नाय है, जिसने विपथगामी धर्म के रथ को सन्मार्ग पर लाने का अप्रतिम पुरुषार्थ किया। यानी पटरी से उतरी हुई गाड़ी को पुनः पटरी पर चढ़ा दिया । हमने प्रस्तुत इतिहास में खरतरगच्छ के जिन व्यक्तित्वों को आकलित किया है, वे वस्तुतः खरतरगच्छीय इतिहास के आदि बीज हैं, जिनके आधार पर खरतरगच्छ का बहुशाखी वटवृक्ष फला / फूला / विकसा । जिसकी सघन छाया में लक्ष लक्ष / कोटि-कोटि धर्म-प्राण नरनारियों ने विश्रान्ति की, आत्म-शान्ति की अनुभूति की । - 'खरतर' शब्द अपने-आप में बड़ा विशद, सूक्ष्म और गरिमापूर्ण अर्थ लिये है । 'खर' का अर्थ तीव्र, तेजोमय, गतिमय, शक्तिमय है । संस्कृत का 'तर' प्रत्यय, जिसका 'तर' अवशिष्ट रहता है, 'खर' के आगे जुड़कर उसकी तीव्रता, गतिमयता, शक्तिमत्ता को और बढ़ा देता है। बड़ा प्रेरणाप्रद है यह शब्द, जिसनेयुग-युग तक धर्मानुप्राणित समाज को स्फूर्ति प्रदान की । जैन दर्शन न केवल ज्ञानवादी है, न केवल क्रियावादी है, वहाँ 'ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः' के रूप में जीवन में ज्ञान और क्रिया — दोनों का अनिवार्य स्थान है, जिनका विशद रूप सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र के रूप में प्रस्फुटित होता है। इन्हीं के अनुशीलन से जीवन की समग्रता सती है। खरतरगच्छ में प्रारम्भ से ही ज्ञान और क्रिया दोनों पर विशेष जोर दिया जाता रहा है । वस्तुतः इनके उद्भावन और अभ्युदय के लिए ही खरतरगच्छ अस्तित्व में आया । महामहिम आचार्य जिनेश्वरसूरि इस आध्यात्मिक क्रान्ति के सूत्रधार बने । जहाँ वे महान शास्त्रवेत्ता, तार्किक एवं चिन्तक थे, वहीं उतने ही X
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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