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________________ -(सिरि भूवलय जी ही कुमुदेन्दु के गणधर हुए। अंकाक्षर काव्य को पढे हुए हैं पढ कर लिखा भी है । आपने पढ कर लिखे हुए को सर्वभाषामयी काव्य में प्राकृत, संस्कृत, कन्नड, अर्ध मागधी, पाली, शूर सेनी, लाड, तेलगु, तमिल, इत्यादि कैसे समाहित होकर इसी काव्य को सभी भाषा की जनता के सामने कैसे प्रस्तुत किया जाए, यह समझाया है। ग्रंथ अनुलोम, प्रतिलोम, अप्रतिलोमों में कैसे अपने आप में लाखों करोडों अन्य साहित्य को भी समाहित किए हुए हैं इसे दिखाया है। सत्य ही में श्री यल्लप्पा शास्त्री जी कुमुदेन्दु के लिए और कन्नड जनता के लिए एक गण्धर के समान हैं। कन्नड माता के लिए, कन्नड जनता के लिए, कार्यरत स्याद्वाद भीषङ मणि वैध राज पंडित श्री यल्लप्पा शास्त्री जी को जनता देश में जिस मान, स्थान और मर्यादा देने का सोचती है उसे प्रदान करें ऐसा जनता से निवेदन करते हैं । कन्नड भाषा की कहानी enU3X2000 0, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, ० णिच्चुव होसदागिरुवंकाक्षर। दच्चु गळोळ्गोम्बत्तु। णोच्चित्तु बिण्णत्तागिरुतरुवंकदा अच्च काव्यके सोन्नयादि।।७।। णुणुपाद सोनेय मध्यदोळ कूडिसे। गणितर्गे लेक्कुव तरुव।। अणीयाद सोनेगे मणियुत नानीग। गुणकर्गे भूवलयवनु॥१२॥ (खंड १ अध्याय २१) वरुषभारतदोळु बेळगुवेत्तिह काव्य। करुनाड जनरिगनादि।। अरुहनागमदोन्दिगे नय बरुवंते। वरकाव्यवन्नु कन्नडिपे॥१३॥ पुरुजिननाथ तन्नंकदोळ ब्राह्मिगे। अरवत नाल्कक्षरवित्त वरकुवरियर सौन्दरिगे ओम्बत्तुनु। करुणिसिदनु सोने सहित।।१७॥ __ (खंड १ अध्याय २२) 95
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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