SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय स्वयं की जितनी भी संपत्ति थी सभी को देकर इस ग्रंथ को श्रीमती ज्वाला मालिनी ने नहीं खरीदा होता तो कन्नड माता की मंगल सूत्र, चूडी कंगन हल्दी कुंकुम के समान, सभी कन्नडीगा के मान बिन्दु के समान, बहु भाषा-भाषियों के समान, भारतीय ज्ञान के भंडार के समान, विश्व के समस्त भाषाओं के सभी लोगो के कर्म कहानी के समान, इस विश्व की न कभी पहले थी और न कभी आगे होगी ऐसी प्रसिध्द वस्तु काल गर्भ में लुप्त हो जाती । इस कारण कन्नड जनता, आगे आने वाली पीढीयाँ इस महनीय महिला को भूल नहीं सकती भूलना भी नहीं चाहिए। इतना होने के बाद लगभग १९३५ में मेरा श्री शास्त्री जी से परिचय हुआ । मैंने शास्त्री जी के ललित नेमि सरस्वती भवन का परिशीलन किया। अंक काव्य का यह विषय ही हम दोनों के बीच बहुत समय तक चर्चा का विषय बना रहा । बहुत समय बीतने के बाद भी इसे पढकर जानने समझने की प्रगति चिंतन के स्तर से आगे नहीं पहुँची। इस पुस्तक से कोई उपयोग नहीं है यह एक बाल ग्रह यंत्र की पट्टी होगी ऐसा शास्त्री जी ने निर्णय लिया और अपना हाथ खींचने को तैयार हो गए । उपलब्ध ग्रंथ राशी को यथावत, यथा स्थिति में रखने के लिए मुझे एक अवसर मिला जिसके लिए मैं अपने आप को धन्य समझता हूँ । संयुक्त प्रयत्न बंद होने के बाद मैं किन्हीं कारणों से अपने गाँव वापस आ गया। श्री शास्त्री जी ने इस ग्रंथ का अनुशीलन का कार्य आगे चलाया। इन अंकों को अक्षर समझ कर अनेकानेक बडी गलतियों से छोटी गलतियों तक प्रयत्न कर अंकों को अक्षरों में परिवर्तित करने के प्रयास को आगे बढा कर उस क्षेत्रों में अंकों के बजाए अक्षरों को मिलाकर, इस साँचे को मिलाकर अनेक दिशाओं से परिशीलन कर, पढने का प्रयास कर उनमें कुछ शब्दों की खोज कर, उन सब को शब्द गणों की तरह पढने का प्रयास कर जितने शब्द जुडते हैं उन्हें जोडकर, खोज कर, छान कर, अभी मुद्रत अंकों में से कुछ पद्यों को बनाया। अभी तक किए गए सभी प्रयासों में सबसे अधिक समय और श्रम का व्यय हुआ। हमारी जानकारी के अनुसार विश्व में ऐसा अंक ग्रंथ यही एक है। इसे पढकर ठीक तरह से जनता को देने वाले केवल श्री यल्लप्पा शास्त्री जी ही
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy