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________________ (सिरि भूवलय के सांगत्य रूपों में “बेदण्डों” को भूवलय ग्रंथ के १२वें अध्याय के बाद के अध्यायों में अंतर काव्य श्रेणियों के दंड रूप के गद्य साहित्य में भी रच कर नृप तुंग से भी पहले के कन्नड के छंदों का दर्शन कराया है कुमुदेन्दु अपने काव्य को मिगिलादतिशयदे ळ्नूर हदिनेंटु। अगणितदक्षर भाणे।। शगणा दिपध्दति सोगसिनिं रचसिहे। मिगुव भाषेयु होरगिल्ल ॥९-१९८॥ चरितेय सांगत्यवेने मुनिनाथर । गुरुपरंपरेय विरचित।। ९-१९६॥ चरितेय सांगत्य रागदोळडगिसि। परितंद विषयगळेल्ल ॥७-१९२।। वशवागदेल्ली कालदोळेम्बा । असदृश्यज्ञानद सांगत्य।। उसहसेनरनु तोरुवुदु ॥ असमानसांगत्यवहुदु ॥ ९-१२१.१२२॥ श्रेष्ठ अतिशय रूप से ७१८ भाषाओं में अगणित अक्षरों में शगणादि पद्धति में सुन्दर रूप से रचा। इसकी तुलना में कोई और भाषा नहीं है। यह काव्य ही चत्ताण होने के कारण इसके लिए निरूपण देने की आवश्यकता नहीं है । इस काव्य में से पक्ति बेदण्डों में से एक को उदघत करते हैं स्वत्सि श्री मद्राय राज गुरु- भूमंडलाचार्यरु- ऐकत्व भावना भावितरूंउभयनयसमग्ररुं-त्रिगुप्तगुप्तरूं-चतुष्क्रियारहितळं पंचवत-समेतलं, सप्ततत्व सरोनीराजहंसरूं-अ मद भंजनरूं नवविध बालब्रह्मचर्यालंकृतरूंदशधर्मसमेतरुं द्वादशांग श्रुतपारावाररुं चतुदर्श पूर्वादिगळु॥१॥ अ १२-३१ से ५० श्रेणी कन्नड लोकभाषा के जीव की सांस "त्रीपदि रगळे” कुमुदेन्दु के ग्रंथ में कैसे मिले इसे जानने वालों से परिशीलन करवाना है । सन् ९४१ में आदि पंप ने इस शब्द गणों के “त्रीपदि रगळों” को अपरूप से उपयोग किया है। ___* इसके आगे शुद्ध कन्नड वृतों के और उन के लक्ष्यों को यहां नहीं दिया जा रहा है । (प्र. सं) 184 84
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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