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________________ ( सिरि भूवलय इसी पध्दति में समस्त शब्द समूहों को प्रत्येक ध्वनियों में प्रतिध्वनियों को अक्षर संकेत के रूप में परिवर्तित कर इन अंकाक्षरों को चक्र बंध के रूप में पहले ही गोमट्ट के द्वारा समस्त शब्दागम शास्त्र के रूप में रचा गया और तब से आज तक पारंपरिक तौर से कुमुदेन्दु तक आया है, ऐसा कहते हैं । उस समय आदि तीर्थंकर के दिए गए लिपि और अक्षर वृषभ देव के सर्वज्ञ रूप में दिए गए दिव्य उपदेश भी कन्नड में ही थे और यह अंकाक्षर गणित था, ऐसा कुमुदेन्दु कहते हैं। इस गणित की भाषा को विश्व के ७१८ भाषाओं को ग्राह्य करने की शक्ति है, ऐसा भी कहते हैं। इसी को कवि इस तरह से कहते हैं यडगै नाडंकवेंदेने ब्राह्मीय । एडगैय सरद कन्नडद । मडुविनंकदे बेरेसलु ऐदैदानंक । एडबल सौन्दरियंक ॥ ५-७८ परमं पेळिद हदिनेंटु मातिन। सरसद लिपि ई नवम। वरमंगल प्राभृतदोळु अंकव । सरि गूडि बरुव भाषेगळं ॥ ५८९ परम के कहेनसार १८ भाषाओं की सरस लिपि है। इस नवम मंगल प्राभूत में अंकों को मिला कर आने वाली भाषा है। रसवु मूलिकेगळ सारव पीवंते। होस कर्माटक भाषे । रसश्री नवमांकवेल्लरोळ बेरेयुत। होसदु बंदिह ओम ओंदंक। रस में जडों का सार होने की भाँति नवीन कर्नाटक भाषा। रस श्री नवमांक में लिखते हुए ॐ करुणेयं बहिरंग साम्राज्यलक्षमीय । अरुहनु काटकद ॥ सिरिमाते यनदे वंदरिं पेळिद । अरवतनालांक भूवलय ॥१ -३० एक से लेकर ६४ तक इस भवलय को साम्राज्य लक्ष्मी की करुणा से अरहन ने बहिरंग रूप से कर्नाटक सिरि माता की कृपा से कहा रागव वैराग्यवनोंदे बारिगे। तागिसे कर्णाटकद । बागिल सालिनिं परितंद कारण । श्री गुरुवधर्मानांक ॥५-८३ 69
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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