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________________ सिरि भूवलय संरक्षित और संवर्धित हो कर " हरिहर सिध्द सिध्दांत अरहन्त राशा भूवलय (६-१८६१९०) धर सेन गुरु के निलय में (७-१९) इस धरसेनाचार्य से गुरु गळवर पद भक्तिं बरुवक्षरांक काव्य की रचनाकर प्राकृत संस्कृत कन्नड क्रमानुसार पध्दति ग्रंथ के इस (१३ - २१२) अन्तश्रेणी ४० के संस्कृत प्राकृत कन्नड तीन ही भाषाओं में शास्त्र का निर्माण हुआ । इस सरमग्गी कोष्टक काव्य (गुणन सूची या पहाडा ) ( ५१७७)को धरसेन के बाद भूत बलि ने इस कोष्टक बंधांक ( ८-५१) रूप में भूवलय बनाकर नूतन प्राकतन दोनों के संधि रूप में रचकर गुरु परंपरा में शामिल होते हैं । इतना ही नहीं भूवलय के कन्नड भाग में ही शिव कोटी (४-१०२) शिवाचार्य (४ - १०५) शिवायन (१०७) समंत भद्र ( ४ - १०१) पूज्यपाद (१९ - ) आदि के नामों को और इस भूवलय के प्राकृत संस्कृत भाग श्रेणीयों में इन्द्र भूति, गौतम गणधर, नाग हस्ती, आर्यमञक्षु कुन्दकुन्दादियों का स्मरण किया। अब अंक राशी चक्र में समाहित साहित्य के नए संगतियों के प्रकाश में आने के बाद इस संदर्भ में नए विचार प्रकाश में आ सकते हैं। हमने यहाँ मात्र प्रकटित ग्रंथ के विवरण देने का प्रयास किया है। सिरि भूवलय को देखकर प्रभावित होने वाले पिरीय पट्टण के जैन ब्राह्मण आत्रेय गोत्र के देवप्पा अपने कुमदेन्दु शतक में महावीर स्वामी से लेकर अनेक महात्माओं को नमन कर कुमुदेन्दु के विषय को श्री वासु पूज्यत्रै विद्याधर देव के पुत्र उदय चंद्र के पुत्र शिष्य विश्व ज्ञान कोविद कीर्ति किरण प्रकाश कुमुद चंद्र गुरुगळं पोगल्वल्ली कहकर आदि गद्य मे प्रस्तावित किया है। श्री देशी गण पालितो बुध नुतह श्री नंदी संघेश्वर : श्री तर्कागमवारिधिमर्म गुरुः श्री कुन्दकुन्दान्वयः श्री भूमंडल राज पूजितल सच्छि पाद पद्मद्वयो यीयात सो कुमुदेन्दु पंडित मुनिः श्री वक्रगच्छादिपः (४ - सम-९६) श्री देशी गण में विद्वानों के द्वारा स्तुतिय किए गए नंदीसंघेश्वर तर्क आगमादि पंडित श्री कुंदकुदांवय, भूमंडल के सभी राजाओं के द्वारा पूजित किए गए हैं। इनके पदपद्मों में कुमदेन्दु मुनि नमस्कार करता है । 59
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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