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________________ सिरि भूवलय महाराशी में से जितना ही निकला जाए कम न होना ही अनंतराशि है । इससे कम संख्यात राशी है यह मानवों के लिये है। अनंतराशी ही परमात्म केवल ज्ञानगम्य है । इन तीन गिनती(संख्या) में ६४ अक्षरभंग में आनेवाले ९२ पृथक अंकों में आयुर्वेद गणित में अनेक विधिविधान, अष्टविभाग, चिकित्सा क्रम आदि निहित है । आज उपलब्ध औषधक्रम में वृक्ष, पत्र, फलादियों से श्रेष्ठ पुष्पायुर्वेद सिरिभूवलय में आने वाला एक विशिष्ठ विचार है । वृक्षायुर्वेद में वृक्ष नाश होते हैं । फलायुर्वेद में थोडा घात है । पुष्पायुर्वेद में वृक्ष को थोडी भी हानि नहीं है । वृक्ष के पंचांगसार भी समाहित होता है । इसका रसायन अद्भुत फलकारी है । यह संख्यात, असंख्यात, अनंतानंक तीन से गुणा कर गणन से मिले लब्धांक में आयुर्वेद में १८००० जाति पुष्प मिलते है । इसमें अतीत कमल, अनागत कमल, वर्तमान कमल यह भूवलय में प्रमुख है। इस सिरिभूवलय काव्य को सागर पल्यादि गणित बंधों से बाँधकर, आत्मा को ध्यान से बांधने की भाँति, पुष्पायुर्वेद से पादरस को बांधना है । रससिद्धि करना है। श्री कृष्णार्जुन से आए पंचभाषा भगवद्गीता के प्राणवायु पूर्वे के द्वारा १४ कर्मों को समझकर अंकों की उलझन को सुलझना चाहिये । नहीं तो पादरस नष्ट हो जाएगा। मनद दोषक्के सिद्धांत शास्त्रनु। तनुविगे प्राणवायु ।। वनुपमवचनद दोषके शब्दवर । धनसिद्धांतवनरुहिं।। अर्थात सिद्धांत शास्त्र मन के दोषों की भाँति ही शरीर के लिए भी प्राणवायु। वचन दोषों के लिए शब्द । इस प्रकार धन सिद्धांत को समझाया। इस प्राणवायु पूर्वे में १३००००००० पद है। इसको अक्षरों में परिवर्तित करें तो २१२५२८००२५४४०००००० होते है। श्री मम्मडि कष्णराज वोडेयर ने देवालय में शत्रु कार्याचरण द्वारा विष्यक्त तीर्थ प्राशन करते समय दैवभक्ति के साथ विष को पचाने की औषधि की रिद्धिसिद्धि को प्राप्त किए हुए थे । प्रतिदिन गरम रागी( एक धान्य) के आटे के साथ सोने के रेक (सोने का पतला चिपटा पतला पत्तर या टुकडा) का सेवन करते थे । अत्यंत बलवान थे । उन्होंने उस तरह के औषध को उस समय के आस्थान में उपस्थित जैन ब्राह्मण पंडितों से सीखा 469
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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