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________________ सिरि भूवलय I इस ग्रंथ समुच्चय में धर्म, साहित्य, विज्ञान, तंत्रशास्त्र आदि के ग्रंथों के साथ भारत के इतिहास, संस्कृति, भाषाओं पर अनेक नवीन जानकारियाँ भी निरूपित हैं । प्राचीन भारतीयों को खंडांतरयान, खगोलविज्ञान, आयुर्वेद, गणित शास्त्र, जीवशास्त्र, भौतशास्त्र, रसायनशास्त्र में निहित जानकारियों को कवि ने प्रस्तापित किया है। अपने ग्रंथ में गीता भी आठ-दस रूप में होने के साथ जयख्यान संहिता नाम के मूलमहाभारत को भी निरूपित किया है ऐसा कुमुदेन्दु कहतें हैं । रामायण, ऋगवेद, जैनदर्शन ग्रंथ भी सिरिभूवलय में समाहित है। परमाश्चर्यकर इस अपूर्व ग्रंथ को प्रकाश में लाने वाले दिवंगत पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी, श्री कलमंगल श्रीकंठैय्या जी अभिनंदन के सुपात्र हैं। इस ग्रंथ विषय में और अधिक संशोधन कार्य होना शेष है । विविध भाषातज्ञों की एक मंडली को यह कार्य अपने हाथ में लेना होगा । केन्द्र सरकार ही इस कार्य का निर्वहन करें तो श्रेयस्य होगा । उनके ध्यानाकर्षण में इस ग्रंथ को लाना राज्य सरकार का कर्त्तव्य है। ९. श्री दोड्डमेटि अन्नदानप्पा जी कर्नाटक राज्य क्यों कहा जाए ? सिरि भूवलय : सन् ६८० ईसवी में हमारे यही कोलार जिले के नंदिदुर्ग के समीप श्री कुमुदेन्दु मुनि नाम के जैन ऋषि के द्वारा कन्नड के अंकों से लिखित सर्वभाषामयी, सर्वतत्वबोधिनि सिरिभूवलय नाम का अपूर्व ग्रंथ शोधित होकर आधा-अधूरा मुद्रित हुआ है। इस ग्रंथ के लिए भारत सरकार तथा राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी ने विशेष प्रोतसाहन प्रदान को हम में से अनेक जानते हैं। इसमें कर्नाटक प्रशस्ति के विषय में अनेक श्लोक हैं । जिसे मैसूर अधिवेशन में मान्य सदस्यों के सम्मुख प्रस्तुत किया गया था कि उन्हें मैसूर राज्य के नाम को कर्नाटक नाम से परिवर्तित करने निर्णय को लेने में सहयोग मिलें। १०. अनंतसुब्बराय जी सिरिभूवलय गणित सिद्धांत आयुर्वेद २९ सितम्बर १९५७ सिरिभूवलय सकल भाषाओं मे (७१८) वेद, शास्त्र, पुराण, वैद्य, वेदांत, ज्योतिष्य, अणुविज्ञान आदि समस्त विचारों (६४ कला), भगवान के जिनवाणि - दिव्यध्वनि में 467
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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