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________________ सिरि भूवलय सार्वजनिकों से विद्या संस्थानों से मेरा एक निवेदन है कि इस ग्रंथ को खरीदकर सहयोग करे तो हम आगे के संस्करणों का मुद्रण तीव्रगति से कर सकतें हैं । यह सार्वजनिकों का बहुत बडा सहयोग होगा । मुझे इस तरह के सहयोग मिलने का विश्वास है । इस संदर्भ में पुस्तकशक्ति के मालिक, शास्त्रग्रंथों के प्रकाशन में आसक्त श्री वाय. के. मोहनजी के साहस के विषय में थोडा विवरण देना आवश्यक है I श्री धर्मपालजी के पास, वंशजों द्वारा सुरक्षित सिरिभूवलय का क्षति ग्रस्त एक प्रति थी। उस प्रति को प्रकाशित करने के लिये कोई भी तैयार नहीं था । कर्नाटक का कोई भी विश्वविद्यालय या कन्नड साहित्य परिषद भी इस प्रति को प्रकाशित करने में किसी भी प्रकार की सहायता देने के लिये तैयार नहीं थे। इसके अलावा धर्मपालजी के पास रक्षित सिरिभूवलय की प्रति में भी संपूर्ण जानकारी नहीं थी। इस ग्रंथ के विषय में विद्वानों को अधिक संशोधन के लिये उचित विवरण भी उपलब्ध नहीं था । हस्तप्रति भी क्षति ग्रस्त थी। श्री वाय. के मोहनजी, इस ग्रंथ के प्रकाशन को एक चुनौती समझ, स्वीकार कर, आवश्यक सामग्री और प्रोत्साहन देने के लिये आगे आए। ६०७० सालों से गुमनामी में डूबे इस विशिष्ट ग्रंथ के मुद्रण के लिये दल-बल समेत खडें हो गये । कर्लमंगलं श्रीकंठय्या जी के संपादकत्व में प्रकाशित सिरि भूवलय ग्रंथ विद्वानों द्वारा परिशोधन के लिये आवाश्यक जानकारी से समाहित नहीं था । मूल सिरि भूवलय में कुमुदेंदु मुनि के अंकलिपि में निर्मित चक्रबंधों को नहीं दिया गया था । यह साहित्य नया ही बन गया । श्लोकों को पढने का क्रम क्या हैं ? यह समस्या, समस्या ही रह गई । यल्लप्पा शास्त्रीजी द्वारा निर्मित साहित्य शोधन का कारण क्या है नियम क्या है? यह किसी को भी ज्ञात नहीं था । प्रथम संस्करण का नूतन मुद्रण इन सभी कष्टों से सिरिभूवलय को उबार कर उसके अध्ययन के लिये आवश्यक सभी अंशों को इकट्ठा कर, ग्रंथ को अत्यंत मनोहर बनाने के लिये पुस्तक शक्ति आगे आया । प्रप्रथम इस ग्रंथ के, प्रथम संस्करण का मुद्रण, सिरिभूवलय कन्नड में रचित प्रप्रथम अंकलिपि ग्रंथ है । अंकलिपि में समाहित चक्रों को अंक चक्रों के नाम से संबोधित करेंगे। 44
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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