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________________ (सिरि भूवलय अतिशयधवळ, और विजयधवळ आदि नामों के व्याख्यान रहें होंगें ऐसा कुमुदेन्दु का अभिप्राय रहा होगा। ___ कुमुदेन्दु जिनसेन गुरु के तनुविन जन्म का घन पुण्य वर्धन वस्तु कह कर जिनसेन को भी गुरु पदवी देने के कारण जयधवळ और महापुराण के उल्लेखों से भी महापुराण (आदिभाग) प्रचार में आने के बाद अमोघवर्ष के अंत्य काल में भूवलय ग्रंथ को रचा होगा। __ कुमुदेन्दु भल्लातकाद्री (गेरुसोप्पे) नंदी, कोवळाल, कळवप्पु, गोट्टिगगंग, तलेकाड़, आदि स्थानों को को उल्लेखित करने के कारण अमोघवर्ष के लगभग समकालीन शिवमार सैगोट्ट के आश्रय को प्राप्त किया था कह सकते हैं। सैगोट्ट शिवमार राष्ट्र कूट ध्रुव के काल में दंगाई के रूप में बंधित हो कर मुम्मडि गोविन्द के द्वारा रिहा किए गए थे। परन्तु पुनः गंगराज्य में दंगे के कारण गोविन्द ने शिवमार को पुनः बंदीगृह में डाल दिया था। कल्भावि शासन में (I.A. XVIII P.274) यह सैगोट्ट शिवमार अमोघवर्ष के पादपद्मोपजीवी ऐसा कुवलालपुरवेश्वर, पद्मावतीलब्धवर प्रसादित, भगवदहरन्मुमुक्षु, पिंछध्वजविभूषण, सारस्वत जनित, भाषात्रय, कविता ललितावगललना लीलाललामं गजविद्याधाम, श्रीमत, सिवमाराभिधान, सैगोट्ट गंगपेमार्नडिगळ ऐसा कहने के कारण अमोघवर्ष को भी यही पहले विधेय (मार्गदर्शक) बने थे । नृपतुंग के पुत्र कृषण दंगाई बन तलकाडु गंग के आश्रित होने पर नृपतुंग ने बंकेश को भेजा । बहुशः इस समय में सैगोट्ट शिवमार पुनः गंग राज्य को खो कर मृत्यु को प्राप्त हुए होंगें। इम्मडि राचमल्ल के रंगपुर शासन में (संकलन संस्करण १,पृ. ९८ इम्मडि शिवमार के अंतिम वर्ष ई.पू.८१२, राचमल्ल के प्रथम वर्ष ८१७ ऐसा कुछेक ने कहा है अर्थात शिवमार नृपतुंग के अभिषेक से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। यह कल्बावि शासन के विरूद्ध में है। युवराज मारसिंह के कूडलूरु शासन में (ई.पू.७९९) सैगोटट शिवमार को गुरुमकरध्वज ऐसा कहा गया है। (निजनिर्मितगजदंतकल्वागमानल्वचेता विरचितसेतुबंघनिबंधना नंदित्विपश्चिन्मंडलः मकरध्वजगुरुचरणसरोजविनमनपवित्रीकतोत्तमांगः ।।) =450
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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