SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिं भूवलय में रचित इन चित्रकाव्यों की उपक्षा नहीं कर सकते थे। धीरे-धीरे आलंकारिकों ने भी चित्रकाव्यों को अपनाकर, शब्दालंकार के चित्रों को, चातुर्य भरे वाग्बंध साहित्य को महत्व देना प्रारंभ किया । आगे चमत्कारों को भिन्न-भिन्न नाम प्रदान किया। एक समयकाल में शब्द वैचित्र्य और स्वरूप वैचित्र्य से भरे चित्रकाव्यों की ही प्रधानता होने के कारण रसवत्काव्यों का महत्व कम भी हुआ था। तेलुगु साहित्य में संस्कृत के चित्रकाव्य पद्धति के अनुसरण की एक परंपरा चली आई है । अवधान पद्धति के प्रखर होने से चित्रकाव्य रचना को और अधिक प्रोत्साहन के साथ गौरव भी प्राप्त हुआ। तेलगु साहित्य में राघवपांडवीयमु आदि ग्रंथ के साथ-साथ अनेक अन्य ग्रंथों की प्रगति भी हुई । शायद यह कहना ठीक होगा कि कन्नड में चित्रकाव्यों के प्रारंभ के लिए संस्कृत से अधिक तेलगु का ही प्रभाव था । विजयनगर साम्राज्य के समय में यह प्रभाव कन्नड पर अधिक हुआ होगा । कन्नड में यमक इत्यादि शब्दालंकार साहित्य के उदय से पूर्व ही रहा होगा | विजयनगर साम्राज्य के समय में पडे प्रभाव के परिणाम स्वरूप कन्नड में भी अनेक चित्रकाव्य रचे गए हैं । परंतु तेलुगु भाषा के बराबर नहीं । वेश्यावाटिकाओं के वर्णन में प्रमुख रूप से पदिरुनुडि चदुरूनुडि (पदिनुडि/चदुर्नुडि) के अलावा अन्य चित्रकाव्य भी हैं । इस विषय में गहरे अध्ययन के उदाहरण उपलब्ध नहीं है । डा. टी.वी. वेंकटाचलशस्त्रीजी के द्वारा रचित कन्नड चित्रकाव्य एक अद्भुत जानकारियों से समाहित ग्रंथ है । उसमें कन्नड चित्रकाव्यों का और चक्रबंधों का दीर्घ परिशीलन किया गया है । वैसे देखा जाये तो कन्नड में यही एक स्पष्ट ग्रंथ है । डा. वेंकटाचलशास्त्रीजी के ग्रंथ के प्रकाशित होने के पश्चात भी उसको पढ कर परिशीलन करनेवालों में से केवल कुछ ही कन्नड विद्वान हैं । बोलचाल के समय में भी उस ग्रंथ के विषय में संवाद जारी रखनेवाले अपेक्षित विद्वानों को मैंने नहीं देखा है । अर्थातः इस तरह के चित्रकाव्यों के परिशीलन के लिये आवाश्यक सावधानी, आतुरता, कुतूहल और प्रयत्न करने का उद्देश्य नहीं दिखता था । 42
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy