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________________ सिरि भूवलय X इसमें शलाक त्र्यनिष्ठापन नाम के करणसूत्रानुसार, शलाक, पृथक तथा देय को करते जाए तो XI (मध्यम असंख्यात) का एक प्रकार प्राप्त होगा। इस XI राशी में पुनः ६ राशियों को मिलाकर शलाकत्र्यनिष्ठापन किया जाए तो एक और प्रकार का XI प्राप्त होगा (XII)। इस XII में चार राशियों को जोड कर शलाकत्र्यनिष्ठापन किया जाए तो XIII (जघन्य परीत अनंत) प्राप्त होगा। ___XVI (जघन्य अनंत) कहा जाने वाला XIII बना है। और (XIII) कहा जाने वाला जघन्य अनंतानंत (XIX) बनेगा । उसको शलाकत्र्यनिष्ठापन करें तो Xx (मध्यम अनंतानंत) प्राप्त होगा। इसमें Xx) ६ राशियों को जोड कर, शलाकत्र्यनिष्ठापन करें तो Xx का एक प्रकार प्राप्त होगा (xx.) इस XXI ६ राशियों को मिला कर शलाकत्र्यनिष्ठापन करें तो का एक और प्रकार का xx प्राप्त होगा। (xx =oc)। केवल ज्ञान की संख्या में अविभागी प्रतिच्छेद के अनुसार इस संख्या को घटा कर उसको शेष में मिलाए तो केवल ज्ञान का उत्कृ अनंतानंत XXI संख्या प्राप्त होगी। वीरसेनाचार्य के धवळाटीका में वितत-भिन्न प्रयोग से संख्यात, असंख्यात , अनंत, अनंतानंत, गणना क्रम को कहा गया है। और वीरसेन ने आगम विस्तार को कहते समय विन्यास तथा समुच्चय (permutation and combination) के द्वारा भंगों को निर्देशित किया है। भंगों में स्थान भंग और क्रमभंग दो प्रकार हैं। १.२४३* ४......... अ = उद्दिष्ट राशी ३३ व्यंजन, २७ स्वर, क्ष आदि ४, कुल ६४ अक्षरों में, एक-एक, दो-दो, तीनतीन, इत्यादि स्थान भंग किया जाए तो २६४१ पद प्राप्त होंगें। कुमदेन्दु, वृषभ तीर्थंकर के द्वारा ब्राह्मी को दिए गए ६४ अक्षर, सौन्दरी को दिए गए शून्य अथवा नवमांक एक ही हैं, कहते हैं। अट्ठारह महाभाषाएँ, अट्ठारह मुख्य लिपि, ७०० क्षुल्लक(लघु) भाषाएँ सभी को अक्षरांक गणित में उतार दिया है। गोम्मट देव ने भूवलय काव्य को नवमांक पद्धति में चक्रबंध रूप में भरत को एक अंतर्मुहूर्त में उपदेशित किया । यह चक्र ५१०२५०००+५००० =५१०, ३०००० अंक, अथवा अक्षर अथवा दलों को समाए हुए था। अनंतर में गौतम गणधर से परंपरा से आए शास्त्र को ६००० सूत्रों में, ६,००,०००ग्रंथों में कुमुदेन्द ने रचा। इतना ही नहीं पूर्ण चक्र का ५१०,३०,००० अक्षरों के संयुक्तांक ९ को आधार बना कर वर्गीकरण किया जाए तो असंख्यात तथा अनंत अक्षर बन ७१८ भाषाएँ अथवा १००८ भाषाओं में अनेकानेक ग्रंथ उत्पन्न होंगें, भी कहा। 440
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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