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________________ (सिरि भूवलय कष्ण है इस के आगे “ह-ख" की संख्या संवाद ही भगवद गीता है ऐसी मार्मिक जानकारी देते हैं। पूर्णांक नौ और प्रतिलोम क्रमानुसार इसके आगे ८ को पहाडा क्रमानुसार क्रम से अपने एक-एक दोष को घटाते हुए ८-७-६-५-४-३-२-१ बन कर अंत में यही पूर्ण नौ के बनने को दिखाते हुए “अद्वैततत्त्व” में लीन होने को रीति को पहाडाक्रमानुसार विवरण देते हैं। नारायाणास्त्र चक्र सिरि भूवलय में कहे गए इस नारायाणास्त्र चक्र को फिरकी की भाँति घुमा कर देखे तो उसके ५,१०,३०,००० सभी अरे के घूमने पर संसार मे भूतकाल में या वर्तमान में या फिर भविष्यत काल सभी समय काल में शुद्ध-अशुद्ध सभी साहित्य वह लिखित हो चाहे अलिखित हो क्रम से प्रकटित होगा कुछ भी शेष नहीं रहेगा इसी को कुमदेन्दु अथवा प्राकत संस्कृत मागध पिशाच भाषाश्च शूरसेनी च। षष्टोत्र भूरिभेदो देशविशेषादपभ्रंशः ॥ इस प्रकार देश -विदेश की भाषा को कहते हैं । और कन्नड मागध मालव लाट गौड गुर्जर आदि छह भाषायें तीन-तीन रूप में अट्ठारह भाषाओं को कहते अथवा कर्णाट, मागध मालव लाट गौड गुर्जर प्रत्येक त्रयमित्यष्टादशमहाभाषः ॥ इस प्रकार अठारह भाषाओं का परिचय देते हैं । और फिर शेष ७०० भाषाओं को पहचाने, पढने, के लिए अनेक गणित क्रमों को विस्तृत रूप से जानकारी देते हैं । इस प्रकार तीर्थंकर के वाक्यानुसार सिरि भूवलय में ७१८ भाषाओं को एक साथ स्वयं ही कहा है ऐसी जानकारी देते हैं। १. हंस भूत, यक्ष, राक्षस, ऊहिया, यवनानि, तुर्की, द्रमिळ, सैंदव, मालवणीय, कीरिय, देवनागरी, लाड, पारसि, आमिश्रक, चाणक्य, ब्राह्मी, मूल्देवि
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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