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________________ सिरि भूवलय) इस प्रकार कुमुदेन्दु गणित शास्त्र के मूल बीज, संख्या शास्त्र का निरूपण, सिरि भूवलय में विस्तार पूर्वक करते हैं। सकलागमांक चक्र सिरिभूवलय अनुलोम क्रमानुसार १ से लेकर ६४ तक , प्रतिलोम क्रमानुसार ६४ से लेकर १ तक है। अनुलोम प्रतिलोम क्रमानुसार इस संख्याओं का गुणवृद्धि करे तो वे १*२*३*४*५*६.......*६४९२ पृथक अंक ६४*६३*६२*६१*६०.....*१=९२ पृथक- अंक इसमें इन अंकों को प्रतिलोम क्रमानुसार, प्रारंभ करे तो प्रथम चक्र में आने वाले ६४ ध्वनियाँ “एकध्वनि” शब्द बनेंगें । इन ६४ ध्वनियों को दुनिया के किसी भी भाषा में प्रयुक्त किया जाए तो भी इतने ही रह कर बाहर कुछ भी शेष नहीं बचेगा । इस क्रमानुसार विश्व के किसी भी भाषा में, उस एकध्वनि ६४ शब्दों के अतिरिक्त उससे अधिक होने की संभावना ही नहीं है ऐसा कवि कहते इस क्रमानुसार दो ध्वनिसंयोग से बनने वाले शब्द केवल ६४*६३=४०३२ मात्र होंगें । इस स्तर पर अर्धाक्षर अथवा ध्वनि स्वर के साथ मिलकर पूर्ण अक्षर बनेगें । स्वर-स्वरों, स्वर-व्यंजनों, स्वर -योगवाहों, व्यंजनों-व्यंजन, व्यंजन-ध्वनियों, व्यंजन-स्वर-योगवाह संयोग की ध्वनियाँ इसी प्रकार से अनेक रीतियों के , मनुष्यों का ही नहीं, पक्षियों का भी, द्विसंयोग भंग की ध्वनियाँ बनेंगी। इन द्विसंयोग भंग की ध्वनियों के शब्द केवल ४०३२ मात्र ही होंगें । इससे अधिक एक न अधिक होगा न कम। इस क्रमानुसार शब्द राशी को इस प्रकार गुणित करके समझा जा सकता है । जिनागम सदृश ग्रंथों में प्रकारों को “शब्दागम-शब्दविद्या” कहा गया है । इस क्रमानुसार विश्व की शब्द राशी - प्रथम संयोग......................६४=... .......................६४ द्वितीय संयोग..................६४+६३=..................४०३२ तृतीय संयोग..............६४+६३+६२ =.......२४९९८४ चतुर्थ संयोग.............६४+६३+६२+६१=......१५२४९०२४ =390
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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