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________________ (सिरि भूवलय इस प्रकार सात भंग रूपों को ध्यान में रख कर पहले कहेनुसार २० पृथक अंकों को सातवीं बार वृद्धि करें तो ३९ पृथक अंको में १ को घटा कर उसको प्रतिलोम बनाकर इसको अनुलोम बना कर घटाया जाए तो उसके शेषसंख्याएँ ही ऋगवेद भारत गीता गाथासूत्र बनेंगे, इसके क्रम को सूक्ष्म रूप से इस प्रकार कहते हैं : परमांकदोळगोंदंकवनु कळेदूडे । बरुवंकदोळु सोन्नेयळिये ॥ सरुवांकदोळगोंबत्तनु कळेयलु । बरुवुदे स्याद्वाददंक ।। उत्तम्वादोन्देरळ मूरू नाल्कैदं । मत्तारेळेन्टोम्बत्तरोळु इत्तेरडडियोळु पश्चादनुपूर्वि । युत्तमांखगळन्निरिसि ।। मत्तद कूडलोम्बतोन्दु बरुवंक । दत्तण सोन्नेय बिडलु ओम्बत्तरंकव कूडलोम्बत्तंक । हत्तुवुदखिल मार्गणेय ॥ मनसिनोळगेदच्चरियिन्दा नोडलु । कोनेयंक कळेये ऋगवेद ॥ मनु जिन भारत गीते गाथासूत्र सर्वभूवलय । सरमग्गी (गुणन सूची, पहाडा) इनके “टवणे” (जोड) का मूल रूप इस प्रकार से होगा । १ १ १ १ १ १ १ १ ०+९ गणित क्रमानुसार, ९तक पहाडे का कोष्टक कुल इस प्रकार होगा 388
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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