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________________ - सिरि भूवलय २२,२३,२४,- ओ ओ, औौ, (ो तथा औी अर्थात क्रमशः ओ ही में १ बार ओ की मात्रा तथा २ बार ओ की मात्रा) २५,२६,२७-औ, औ, औौ (औ तथा अर्थात क्रमशः औ ही में १ बार औ की मात्रा तथा २ बार औ की मात्रा) *विशेष यह अक्षर संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी में प्रचलन में नहीं है परन्तु कन्नड और मराठी भाषा में आज भी प्रचलन में है इसका उच्चारण स्थान जिह्वा से तालू का स्पर्श है ।। २. वर्गीय- क,च,त,ट,प, वर्ग के २५ अर्धाक्षर (अर्थात २८-क् , २९-ख, ३० ग् क्रमेण) ३. अवर्गीय –य र ल ,व, श, ष, स, ह वर्ग के आठ अर्धाक्षर (अर्थात ५३ य,५४-र् क्रमेण) ४. योगवाह-बिन्दु-०, विसर्ग-:, उपध्मानीय-. (इक)* तथा जिह्वामूलीय-::(फ़क) सिरि भूवलय के चक्रों के खानों में जो भी संख्या हो उसे उसी प्रकार से बिना हेर-फेर के उच्चारित करना है । संस्कृत प्राकृतादि भाषाओं मे न प्रचलित वरन कन्नाड भाषा में प्रचलित “ळ” (प्राचीन कन्नड) भी यहाँ स्वर समूह के पाँचवें खाने के ध्वनि का अक्षर है जो १३, १४, १५, खानों में रखा गया है । कन्नड भाषा के शिला लेखों में और ग्रंथों में प्रयुक्त किए गए “रळकुळ" रूपों को भी प्रप्रथम बार इस प्रकार के अंक काव्य से प्रारंभ हुए ऐसा सोच कर निर्णय लेने का कारण है। पढने का क्रम सिरि भूवलय के चक्रों को पढने की रीति को समझना अत्यंत कठिन है। सिरि भूवलय के चक्र एक-एक परिक्रमा के द्वारा आगे बढ़ते हैं। सिरि भूवलय के नाना गतियों और बंधों के नाम कहे जा चुके हैं। प्रत्येक प्रकार के गति और बंधों को पढने का प्रयत्न जारी नहीं है। 381
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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