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________________ (सिरि भूवलय प्राकृत-अट्विह कम्मवियला नोट्टिया कज्ञापराट्य संसारदिट्ट नयलथ सारासिद्धा सिद्धिंममरि संतु संस्कृत - ओंकार बिन्दु संयुक्त नित्यं ध्यायंति योगिनः कामदं मोक्षदं च इवं ओंकाराय नमो नमः बंगाली - रिसहा दीणं च्चेणं गोनधि गयतुरगर्नारा कोकं सवुदुं नंदानत्तं तेलगु - सकल भूवलयमुनुकु प्रभूषणप्रभुवुण्डु मनसु दणाणावरण मनि नेनु नमस्कारंबु चेसि तमिल-अघर मुदल एळुत्तेल्लां आदिभगवन उलुगुक्कु मोदल कुरुळु काव्यतिल इस प्रकार प्राकृत, संस्कृत, द्राविड, आंध्रा, महाराष्ट्र, आदि ७१८ भाषाओं को इस कन्नड ग्रंथ में बांधा गया है ऐसा कहा गया है । जिनवाणि ५-८-१९५३ इस पत्रिका के संपादकीय में “सिरिभूवलय सिध्दांत” शीर्षक के अंतर्गत लिखे गए लेखन में सिरि भवलय वैसे तो देखने में एक कन्नड ग्रंथ है परन्तु उसमें दुनिया का सर्वांश समाहित है । जो उसमें है वह कहीं भी नही है और जो उसमें नहीं है ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा, ऐसी उसकी महिमा है। इस ग्रंथ में हमारी दृष्टि को प्राकृत संस्कृत अर्धमागधी कन्नड आदि काव्य समाहित दिखाई पड़ते हैं । ग्रंथ के आदि में दिये गए चक्र बंध के अनुसार इन श्लोकों को रचा गया है । इस काव्य में ७१८ भाषाएं समाहित ऐसा विमर्शकों का अभिप्राय है। हमें सभी भाषाओं का परिचय होने पर ही हम इसे विमर्शित कर सकते हैं। यह ग्रंथ नाना विषयों को भी समाहित किए हुए है साथ ही तर्क, व्याकरण, छंद, अलंकार, नाटक, गणित, ज्योतिष्य, आदि समस्त शास्त्र भी इसमें एकत्रीभूत हैं, ऐसा कहा गया है । यह भूवलय सिध्दांत कन्नड काव्य होने पर भी सभी भाषाओं के लिए मूल स्तंभ बना हुआ है । 374
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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