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________________ सिरि भूवलय दो साल से इस ग्रंथ को तैयार करने के प्रयास में समर्पित भाव को मैंने स्वयं अपने आँखों देखा है। इन्होंने इस पुस्तक की निधि को भाषाओं को अपने वश में करने के राज मार्ग को दिखाया इन्हें हम अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं। इस पुस्तक का इतिहास कन्नडीगाओं के स्वभाव के लिए एक आईना है। यूरोप के किसी भी भाषा समुदाय को अथवा अमेरिका वासियों को ऐसा एक ग्रंथ उपलब्ध होता तो, जाने कितने ही संशोधन अलग-अलग दृष्टियों से किए जाते। तब निश्चित रूप से दुनिया भर में इस ग्रंथ का जय घोष गूँजता । ज्ञानान्वषियों को, भारत सरकार को, राज्य सरकार को यहाँ एक आह्वान है और एक अवसर है, एक भंडार बाँहे फ़ैलाए पुकार रहा है । देश कैसे स्पंदित होता है यही प्रतीक्षा है । इस अमूल्य निधि को हमारे हाथ सौंपने के लिए पुस्तक शक्ति के मित्रों को अभिनंदन । मैं आगे प्रथम संस्करण (कन्नड) के विमोचन के अवसर पर माननीय राज्यपाल श्री टी. एन. चतुर्वेदी जी के भाषण का सारांश प्रस्तुत कर रहा हूँ । 29 एल. एस. शेषगिरी राव
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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