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________________ सिरि भूवलय हिरियत्वविवु मूरु सर मणिमालेय । अरहन्त हारद रत्नम् * ॥ सरफणियन्ते मूरर मूर ओम्बत्त । परिपूर्ण मूरुमूरु यशदन्कवदरोळगोम्दम् कूडलु । वशदा सोन्नेगे ब्राम्ह इ* ।। वेसरिन लिपियक देवनागरियेम्ब । यशवदे ऋग्वेददन्क मनुजराडुव ऋक्कु दिविजराडुव ऋक् । दनुजराडुव ऋक्कुद* नद ।। विनयवु गोब्राम्हणेभ्यह शुभमस्तु । जिनधर्मसम सिद्धिरस्त एनुवन्क लिपिय अक्षाश सनुमत धर्मदय्क्यान्क कोनेयादि परिपूर्णदन्क मनुमथराद्यन्तदन्क घन कर्नाटक रिद्धियन्क कोनेयादि ब्राम्हि भूवलय सु विशाल गणनेय पूर्वानुपूर्विय । सविषयवागलावय्त * ।। सवियादियदु पश्चादानुपूर्वियदागे । नवदन्ते कोनेगे अद्वयत द्रुशन ज्ञान चारित्रव् मूररोळ् । परमात्मरूपडगिरला शा* ॥ सिरि मूर तदुभयवने यत्रतत्रानु । वर पूर्वे यप्पुद् अद्वय्त धर्मवदिन्तु समन्वयवागलु । निर्मलव् अ द्वय्त्अ शास्त्र । शर्मरिगा मूरु आन्पूर्विगे बन्दु । धर्मद् ऐक्यवनु साधिपुदु म्नदर्थियिन्द अनेकान्त जय्नर | जिननिरूपितवह शास् त्र । दनुभय द्वय्त कथन्चिदद्वय्तद । घनसिद्धियात्म भूवलय जिन सिद्धरात्म भूवलय घनद प्राक्त वदधिरस्तु एनुव समस्त शून्यान्क अनुदिन बाक्ळ्विकेयन्त्र मनु मुनिगळ ध्यानदन्क जिन रूप साधनेयन्क ॥८४॥ 112911 118011 ॥९३॥ ॥९६॥ जिनवर्धमानान् क नवम दनुज मनुजरय्क्यदन्क मनुजरेल्लर धर्मदन्क कनसिनोळ् शुभदादियन्क इननन्ते ज्योतियाद्यन्क तनुविन परिशुद्धदन्कम् ||१०५ || ॥ १०८ ॥ ॥ १११ ॥ सनुमत दिव्य सिद्धान्त धनधर्मदन्क भूवलय अणुमहान् काव्य भूवलय तनुविन अतनु भूवलय ।। ११४ ।। आदिगनादिय कालवे निन्नेयु ई दिन नोनु बाळुवदु । आदियवश र * त् नत् रयगळ साधिप । नादि अनन्तवे नाळे गमनिसलेलुर्गे सम्यक्तव रत्नद । क्रमदन्कवधुनाम् हु★ ट्टि || समतेय खड्गदिम् क्रोधमानवगेल्व । विमलान्‌कनाळेय दिवस मनद दोषके शास्तर तनुविन दोषके । घन हदिमूरु कोटियवश् अ * ॥ जिनर वय्यागम वचन दोषके शब्द । वेनुवन्क मूरु भूवलय मिदु मधुरतेयिन्द ह्रुदयवाळुवदिव्य । हदनाद मुदवीश्रीव* यण ।। ह्रुदयान्क पद्मददलवेरि नाळेय । हदन काणिसुव अद्वयत दिनविन्दु वर्तमानन निन्नेयतीतवु । घननाळे अनागतवा भू* ॥ तणवु द्वय्याद्वय्त जय्नव कूडिप । मनुज दिविज धर्मदन्क जनरिगनन्त भूवलय जिनरवाक्यार्थ भूवलय तनगात्मशुद्ध भूवलय ॥८५॥ 116611 ॥ ९१ ॥ ॥९४॥ 118911 ॥९९॥ 311 ॥ १०६ ॥ कोनेयादियन्क भूवलय नेनेदाग सिद्ध भूवलय ॥१०९ ॥ ।।११२ ।। मन शुद्धियात्म् भूवलय कनकद कमल भूवलय ।।११५ ।। ॥८६॥ ॥८९॥ ॥९२॥ ॥९५॥ 118611 ॥१००॥ 1120911 ॥११०॥ ॥११३॥ ॥ ११६ ॥ ॥८१॥ ॥८२॥ 116311 ॥१०१॥ ।। १०२ ।। ॥१०३॥ 1120811 ।।११७ ।। ।। ११८ ।। ।।११९ ॥ ।। १२० ।। ।। १२१ ।।
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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