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________________ सिरि भूवलय भाग में शामिल किया गया है। अभी इस कवि के विषय में कोई निर्धारण होने पर भी और भी कई अन्य विवरण प्राप्त हुए हैं। सभी अनिर्णय की स्थिति में ही है। इस ग्रंथ को बहुत अधिक पीछे धकेलने की आवश्यकता नहीं है यह मध्य कन्नड के काल में रचित है ऐसा माना गया है क्योंकि ग्रंथ की भाषा में तथा छंदों में इसका प्रमाण मिलता है। अब इस सुन्दर मुद्रण को विद्वानों संशोधको और गणितज्ञों के ध्यान में लाकर एक समूह को इसका संशोधन करना चाहिए। पुस्तक शक्ति का यह कार्य साहस पूर्ण है। पुस्तक प्रकाशन करने वाले धन लाभ का सोचते हैं परन्तु श्री वाय. के. मोहन जी इस उपेक्षित ग्रंथ में जीव संचार करने का प्रयत्न कर रहे हैं। इसके प्रकाशन में अनेकानेक रीति से उत्साही श्री वाय. के. मोहन, मुद्रण विन्यास में माहिर उनकी बहू श्रीमती वंदना राम मोहन और आज तक सिरि भूवलय की हस्त प्रति को संरक्षित रखने वाले एम. वाय. धर्मपाल जी का अभिनंदन करना चाहिए। आज कंप्यूटर का युग है इसके प्रभाव से इस ग्रंथ का अंतरंग बाहर आए, समाचार पत्र प्रचार करें गणितज्ञ हाथ मिलाएं। सब मिलकर इस अति उत्तम गवेषण के प्रकाशन का प्रयत्न सफल हो ऐसी कामना करता हूँ । बंगलोर ३०- ०१ - २००३ 27 प्रो. जी. वेंकट सुब्बय्या
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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