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________________ (सिरि भूवलय ॥२३७॥ ॥१४२॥ याव भाषेगळलि एष्टन्कवेन्नुव । ठाविन शन्केगे तावु ॥ तावु स* मन्वयगोळिसि समाधान । वीव सिद्धान्त भूवलय ॥१२६।। ई विश्वाळुव अन्क ॥१२७॥ श्री वीरवाणिय अन्क ॥१२८॥ साविरलक्षशन्केगळ ॥१२९॥ ठाविन उत्तरदन्क ॥१३०॥ पावन स्वसमयदन्क ॥१३१।। आविध काव्यद अन्क ॥१३२।। कावनाडुव मातिनन्क ॥१३३॥ ई विश्वदध् यात्मदन्क ॥१३४॥ तीविकोन्डिह दिव्य अन्क ॥१३५॥ सावनळिसुव चक्रान्कम् ॥१३६॥ धावल्य बिन्दुविनन्क । आ विश्वदन्क त्रिषष्टिहि चतुर्षष्टिः । पावनवागिह अन्क म्*॥ तीवि 'र्वा वर्णाह शुभमते मताह' द। काव 'पराक्रते सम्स्कू तेचा' ॥१३८॥ रा 'पिस्वयम् प्रोक्ताह स्वयम्भुवा' । आपद विरुवन्क्द्अ ब*न् ॥ धापद सम्योगदोळु अर्वत्नाल्कु । श्री पद पद्म सम् गुणिसे । ॥१३९॥ गुणुपाद ब्राहिय एडगय्योळन्कित । गुणनद सेरमाले ब् न्*ध ॥ दणुविनोळ आदीश बरेद खरोष्टिय । तनियाद वृषभान्कितवु ॥१४०॥ सरस सउन्दरिय बलद कयोळच्चोत्ति । दरवनाल्कु धर्मान्क ॥ सर मगियिम् बन्द लिपियनकवेननुव । सिरियन्क लिपियिह गणित ॥१४॥ रसयुतवा 'अकारादि हकारान्ताम्' । वश 'शुद्धाम् मुक्तावली' म् क* ॥ रस 'मिव स्वरव्यन्जन भेदेन द्वि'। वश 'धा भेद मुपय्यु णवर ‘षीम् अयोगवाह'द ‘पर्यन्ताम् सर्व' । विवर 'विद्या सु' म्*सन्ग नव 'ताम् अयोगाक्षर सम्भूतिम्'। सवि 'नयक ॥१४३॥ बीजाक् षरय्श् चि मनु ताम् समवादीदधत्ब्राम्ही मेधा। विन्यति सुन्दरी वरम् ॥ घन सुन्दरी गणितम् स्थानम्’ स क्रमव्हि'। घनवह 'सम्यगधास्यत्' ॥१४४।। कर 'ततो भगवतो वक्तानिहिहस्ता । क्षरावलीम्' सिद्धव *ह 'नमइ’॥ सर 'तिव्यक्त सुमन्गलाम् सिद्ध। गुरु ' माकाम्’ स भूवलय दरुशनमाडलन्याचार्य वान्ग्मय । परियलि ब्राहियु व य*दे || हिरियळादुदरिन्द मोदलिन लिपियन्क । एरडनेयदु युवनान्क मळिद दोष उपरिका मूरदु । वरटिका नाल्कने अन्क ॥ सरव जी* खरसापिका लिपि अइदन्क । वर प्रभारात्रिका आरुम् सर उच्चतारिका ऐळुम् ॥१४८॥ सर पुस् तिकाक्षर एन्टु ॥१४९॥ वरद भोगयवत्ता नवमा ॥१५॥ सर वेदनतिका हत्तु ॥१५१॥ सिरिनिन्हतिका होमदु ॥१५२॥ सरमाले अन्क हन्नेरडु ॥१५३।। परम गणित हदिमूरु ॥१५४॥ सर हदिनालकु गान्धर्व ॥१५५।। सरि हदिनयदु आदर्श वर माहेश्वरि हदिनारु ॥१५७॥ बरुव दामा हदिनेछु ॥१५८॥ गुरुव बोलिदि हदिनेन्टु इरुविवेल्वु अन्क लिपियु ॥१६०॥ तिरियन्च नारकररियद हदिनेन्टु । परिशुद्ध लिपियन्क व* वनु ॥ बरेयलु बहुदु हेळ केळलु बहुदव । सरसान्क आमरलिपियोळ् ।।१६१॥ ||१४५॥ ||१४६॥ ॥१४७॥ ||१५६॥ ॥१५९॥ 283
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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