SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - सिरि भूवलय सिरि भूवलय का कार्य सरस्वती जी के बिना इतनी जल्दी पूरा होना शायद नामुमकिन ही था क्योंकि सिरि भूवलय के ६ अध्यायों के अक्षरों का तथा श्लोकों का उन्होंने अक्षर विन्यास किया है जो एक कठिन कार्य है। __कहते हैं कि ठंडी राख के नीचे गरमाहट होती है जो फिर से आग सुलगाने का सामर्थ्य रखती है, सरस्वती जी के विषय में यह कथन सही जचता है ऊपर से शांत और संकोची दिखने वाली सरस्वती अपने अंदर काम करने की एक अटूट गरमाहट रखती हैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए मैं उनका आभार मानती और उन्हें धन्यवाद अर्पित करती हूं । सिरि भूवलय ग्रंथ कार्य की संपूर्णता के लिये मैं अनेक लोगों की आभारी हूं । आभार सिरिभूवलय का कार्य एक धार्मिक कार्य है इसे केवल ईश्वरीय अनुकम्पा से ही पूर्ण किया जा सकता है । अतः जगज्जननी महामाता को नमन करते हुए उनको श्रद्धा भक्ति तथा धन्यवाद के सुमन अर्पित करती हूँ। ___“घर ही प्रथम पाठशाला और माता ही प्रथम गुरु" यह बात मेरे जीवन के इस कार्य सिद्धि में अक्षरशः सत्य सिद्ध होती है। सिरि भूवलय ग्रंथ कन्नड भाषा में है वैसे तो मेरी मातृभाषा कन्नड ही है परन्तु मुझे कन्नड का परिवेश नहीं मिला है क्योंकि मेरे पिताश्री मध्य प्रदेश में कार्यरत थे और मेरा विद्यार्थी जीवन हिन्दी के वातवरण में साँसे लेकर गुजरा परन्तु जैसा कि मैंने कहा कि मेरी माता ही मेरी प्रथम कन्नड गुरु हैं। विधिवत कन्नड भाषा की स्कूली पढाई न उपलब्ध न होने के कारण माता जी ने मातृभाषा की पढाई घर में अनिवार्य कर दी थी और हर रविवार का दिन घर कन्नड स्कूल में तबदील हो जाता उस समय यह पढाई बोझ सी लगती थी और आज उसी बोझ ने मुझे इस महाग्रंथ के कार्य करने का गौरव प्रदान किया । अतः मैं अपनी श्रीमती ए. सरोजा को सादर प्रणाम करते हुए उनको धन्यवाद अर्पण करती हूँ। साथ ही मुझे अपने पिता श्री ए. नागराजराव का लगातार प्रोत्साहन प्राप्त हुआ उनकी भी मैं कृतज्ञ हूँ। मेरे पतिदेव श्री बी.आर. रमेश की मैं आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे यथा संभव सहयोग और प्रोत्साहन प्रदान किया यदि वे मेरी अनुपस्थिति में घर और
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy