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________________ शरणु बन्दवर पालिसुव परम सम् यज्ञान निधि अवतारविनिसिल्लदवनु सुविशाल धर्म साम्राज्य अवधरिसुव तत्वगळनु नवकार जपदोगिरुवम् दरुशनवमाडे परद्रव्यगळ् । बरुवदु कर्मद बन्ध । वर स्* म्युक्त्वव शुद्धवागिसदेन्दु । अरिवरु मूवरु गुरुगळ् रितेयोळात्मन सम्सारदिम् कित्तु । अरहन्त सिद्धरम् म* नके ॥ बरुवन्ते माडलु सिद्ध तानक्येम्ब । परम स्वरूपाचरणर् ॥ छोद्यवागिरुव चारित्र सारिद । रायर् आचार्य अवर य् अ । महवीरदेवन वाणियिम्बन्दिह । महिमेय भद्रसवख्यवु शु* री हरुष वर्धनवाद आ निराकुलितेय । सरमाले मन्गलवर शरी* अरहन्त देवर क्पेयु सरलान्क बुद्धिय रिद्धि साध्य असाध्यवेम्ब एरडनुतिळिदिह । आद्याचार्यरु हितवर् सहनेय धर्म निराकुलवेन्नुव । महिमेयन्कारवा करुणेय बेरेसिह गणितदे गुणितदि । बरुव दयापर धर्म बरुवदु समख्यात गुणित परिपरि यतिशय सिद्धि 1128011 ॥ १४३ ॥ ॥१४६॥ ।।१४९ ।। ।।१५१॥ ॥१२२॥ ।। १२५ ।। ।।१२८ ॥ ॥१३१॥ इळेयपालिप नव्य काव्य सुळिय बाळ्वेयदग्र काव्य एळेवेण्ण दनियन्क काव्य ॥१३९॥ ।।१४२ ।। ।। १४५ ।। ।।१४८।। सिरि भूवलय कविद कळ्तलेयनोडिपनु अवनु धर्मद बेट्टवेरि नववनु भागिपनेरडिम् नव स्वरगळनु कूडिसुवम् ।। १५८ ।। ॥१६१।। ॥१६४॥ ॥ हरुषदायकवाद वाक्य सरस साहित्यद गणित परम भाषेगळेल्लविरुव ॥ १२३॥ ॥१२६ ॥ ।।१२९॥ ॥१३२॥ अवनु निरन्जन पदनु कविकल्पनेगे सिक्कदिहनु भवसागरवनु गुणिपम् नव सिद्धकाव्य भूवलयम् वीर महादेव वाणिय सर्वस्व । शूर दिगम्बर मुनियु ॥ सारिद गुरुगळु दारियोऴ् बरुवाग । नेरदध्यात्म भूवलय रोषवळिद काव्य सिद्ध सम्पद काव्य । आशेयोळ् भव्य भावुक रु* ॥ लेसिनिम् भजिसुत बरुव निर्मल काव्य श्रीशन गुणितद काव्य अष्ट कर्मन्गळ निर्मूलव माळ्प । शिष्टरोरेद पूर् वे* काव्य ॥ द्रुष्टान्तदोळगेल्ल वस्तुव साधिप । अष्टमन्गलविह काव्य त्नु मन वचनव क्तकारित् अनुमोद । जिन भक्तियनुभव न्* वद ॥ गुणकारवेन्नुव गणकरिम् बन्दिह । अनुभव वय्भव काव्य थळतळिसुव दिव्यं कलेगळर्वत् नालकु । गेलुवन्कंद्नम न* द काव्य ॥ बळेसुत चारित्रव शुद्धगोळिसुत । बळिय सारिद दिव्य काव्य ।।१५९ ।। ॥१६२॥ घळिगे वट्टल दिव्य काव्य गिळिय कोगिलेदनि काव्य ॥ १६५ ॥ सुलिवल्ल सुलियद काव्य बेळेव सर्वोदयकाव्य तिळियाद सरसान्क काव्य इळेगादि मनसिज काव्य 231 परमवृक्षदर्धिय गणित गुरुगळाशिसुतिह सिद्धि परिपूर्ण भरतद सिरिय अरिवु एाळ्न्ऊर् हदिनेन्टु अरहन्तरोरेद भूवलय ।। १२४ ।। ।। १२७ ।। ॥१३०॥ ।।१३३॥ ॥ १३४ ॥ ॥१३५॥ ॥१३६॥ ॥१३७॥ ।।१३८ ।। ।।१४१ ।। ।। १४४ ।। ॥ १४७ ॥ ।। १५० ।। ।।१५२।। ॥१५३॥ ।। १५४ ।। ॥१५५॥ ॥१५६॥ ॥१५७॥ ॥१६०॥ ॥ १६३॥ ॥१६६॥
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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