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________________ सिरि भूवलय अभिव्यक्ति बात उन दिनों की है बीता था मेरी पुस्तक “अच्छा लगता है” काव्य संग्रह का लोकार्पण हुए केवल एक सप्ताह गुजरा था । मैं अपने निवास स्थान पाँडीचेरी वापस आ चुकी थी कि एक सुबह मेरी नींद दूरभाष की घंटी से खुली। मेरी मार्गदर्शिका श्रीमती मधु धवन की आवाज़ सुनाई दी उन्होंन २० मुझे ग्यारह बजे तक मिलने के लिए बुलाया । जब मैं ग्यारह बजे उनसे मिलने निश्चित स्थान पर पहुँची तो देखा कि वहाँ राजभाषा सम्मेलन का आयोजन था । एक सुखद आश्चर्य । उस सम्मेलन में अनेक स्थान से वक्ता पधारें थे और मेरा परिचय वहाँ एक कन्नड भाषी हिन्दी कवयित्री के रूप में मधु जी ने सभी से कराया और यहीं पर मेरे लिए एक नए अध्याय की शुरुआत हुई। M उसी सम्मेलन में मेरी मुलाकात महोदया नीलम शर्मा जी से हुई। जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि मेरी मातृ भाषा कन्नड है तो उन्होंनें अनायास ही एक ऐसा आग्रह किया जिसे मैंनें सहर्ष स्वीकार लिया। यहीं पर सिरि भूवलय के हिन्दी रूपांतरण की नींव पडी । फिर तो आनन- फानन में उन्होंनें मुझे वह पुस्तक दिखाई और अनुवाद की बातें तय हो गई और यह तय हो गया कि वे दिल्ली पहुँचते ही मुझे उस पुस्तक की एक प्रति भिजवा देंगी । कुछ १५-२० दिनों के बाद मुझे उस पुस्तक की एक प्रति डाक द्वारा मिली उस पुस्तक को (एक ही नज़र में) देख कर मुझे एहसास हुआ कि यह पुस्तक साधारण पुस्तक नहीं है यह एक धार्मिक ग्रंथ है और मुझ जैसे साधारण के लिए यह कार्य एक साधना के बराबर होगा और अति कष्टकर भी । इस पुस्तक को देख कर थोडी सी निराशा ही हो रही थी कि पता नहीं कैसे यह कार्य होगा और इस निराशा के कारण मैंने उस पुस्तक को उठा कर रख दिया । पर एक अनजान सा आकर्षण मुझे खींचे जा रहा था पुनः मैंने उस पुस्तक को हाथ में लिया और उलट-फेर कर देखने लगी । पुस्तक के दूसरे पृष्ठ पर अवैतानिक संपादक मंडली के सदस्यों का नाम छपा देखा। एक-एक नाम पढते हुए एक ही खयाल मन में आ रहा था कि इन दिग्गजों से कैसे संपर्क साधा जाए? किस तरह इन से इस पुस्तक के विषय में व्यवहार किया जाए । तभी एक नाम श्री वाय. के. मोहन जी पर दृष्टि पडी । 20
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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