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________________ ॥१००॥ ॥१०॥ ॥१०२।। ॥१०३। ॥१०४॥ ।।१०७॥ ॥११०॥ ॥११३।। ॥११६॥ ॥११९॥ (सिरि भूवलय ससिद्धियागे दुोह सुवर्णद । वशवागुवन्तात्म निर त*॥ यशवळिसुव देहवजितनागुत । वशवागे मोक्षवु सिद्ध ईशनागुवनु लोकाग्रदे नेलसुव । राशियोळ् शुद्ध तानागि ॥ लेसा ती* रथवदम् सारे भव्यर । राशिराशिये कादिहिदु पतितनागिरे आत्मनु सम्सारद । व्यथेयनेल्लवम् समेदि * पा। क्षितिये श्रीसिद्धत्वदनुभवदादिय । हितवदनन्त काल मान मायवु लोभ्अ क्रोध् कषायद । ताणवेल्लव ईगळिदु ॥ ताण था*ण वनेल्ल काणुतलरियुत आनन्ददिहरेल्ल सिद्धर् णवकार मन्त्रद सारसर्वस्वरु । अवरिवरेन्नदे सर स* ॥ अवयववे आत्मन रूपवागिह । अवरु सिद्धरु एन्दरियय् नवदन्कसम्पूर्ण सिद्धर ॥१०५॥ अवरु वासिसुव भूवलय ॥१०६॥ नवकारमन्त्रद सिद्धर् अवरनन्तान्कद बद्धर ।।१०८॥ अवरनन्तद ज्ञानधररु ॥१०९।। नवकोटि मुनिगळ गुरुगळ् अवरन्ग निर्मल शुद्धर ।।१११।। अवयववळिदवयवरु ॥११२।। नवसद्श न मयरु । अवरु स अमर आदि ॥११४॥ अवरु तमिन्द जीविपरु ॥११५।। सवि सख्य सार् सर्वस्वर् अवतारवळिदु बाळ्ववरु ॥११७॥ अवरनन्तद वीर्ययुतरु ॥११८॥ अवरनन्तद सुखमयरु सविय अगुरुलघुगुणरु ।।१२०॥ नवसूममत्व ताळ्दवरु ॥१२१।। कवियवगाहदोळिहरु अवरव्याबाधधररु ॥१२३।। नवगे बेकवर सम्पदवु ॥१२४॥ अवररहन्तत्व तिळिदर् सुविशाल जगवनोळ्पवरु ।।१२६।। अवर पादके नमिसवेन ॥१२७॥ भववळिदवरा सिद्धर् ठवनेयोळ न्कदमरदन्कव स्थापिसि । दवयववो एम्बअव र* ॥ नवकेवललब्धि गोडेयरेन्देनुवरु । अवररहन्तर् इष्टात्मर् इष्टद देवरु घातिकर्मवगेल्दु। स्पष्टदोळ् भववनीगिद सद् ॥ व्रष्टियोल् भूवलयके धर्मव पेळद्। स्पष्ट ओम्कारवेळ्दवरु।१३० दनियोळु मूरुवेळेयोळु अनन्त । गणितदोळडगिसिदवरम् ॥ * नजनाभिय सोन्कदे निन्द देवरम् । जिनदेवरेन्दरियुवुदु संयुतवाद भूवलय सिद्धान्तद । रसवन्तर्मुहूर्तदि ती* थ । होसदेन्दु मूरुकालवनोम्देकालदि । होसदोम्दरोळु पेळिदभवर् ओम्कार ओम्दरोळुगिसिदरवत्नाल् । कम्कम ओम्दमर् ह ॥ अम्कवेअक्षर् अक्षर् अम्कवेम् । बकिय पेळ्दवरवरु मनुमथनुपटिलदोळु बाळ्व नररिगे । घनकर्मवळिदवस र्* व ॥अनुभववनु पेल्द अरहन्तरडिगळ । नेनेवल्लि ऐदन्क सिद्धि नखशिखेगळु समानदोळिर्प देहद। सकलान्ग परमनिगिरु तु*म् || सकलागमवु सर्वान्गम् ओम्दरिम् । प्रकटवादरहन्त् देव खचर व्यन्तर भवनामर कल्पद । सचर देवतेगळवरु नो* ॥ सचराचरवनेल्लव केळिदवरागि । अचल भक्तिय प्रकटिसिदर् र्सनेन्द्रियदाशेयळिद भव्यात्मरु । वशगोण्डु सकलान्क दु*दया । वशवादुदेमगेन्दु नमिसुत पोदरु । असद्रुश भूवलयक्ने ॥१२२॥ ॥१२५॥ ॥१२८॥ ॥१२९।। ॥१३१।। ॥१३२॥ ॥१३३॥ ॥२३४ ||१३५|| ॥१३६।। ॥१३७। 206
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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