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________________ सिरि भूवलय १२, १९, और २०वें अध्यायों से आगे चले तो अश्व गति, नाग बंध, जोडी नाग बंध (नागद्वय), के द्वारा नए साहित्य की रचना आरंभ होगी ऐसा तर्क कहते हैं। ग्रंथ कर्त्ता स्वयं ही हंस, पद्म, शुध्द, नवमांक, वरपद्म, महापद्म, द्वीप, सागर, पल्य, अम्बु, सरस, शलाका, श्रेणी, अंक, लोक, रोमकूप, क्रोंच, मयूर, सीमातीत, कामन, पदपद्म, नख, चक्र, सीमातीत का गणित, इत्यादि बंधों का प्रयोग किया गया है, ऐसी जानकारी देते हैं। इनमें शब्दान्वय और स्वरूपों में बहुत कुछ अस्पष्ट ता है। पद्म के संख्या प्रभेद परिचित होने पर भी यहाँ पर पद्म की रचना कैसी है? पता नहीं है। क्रोंच मयूर, हंस आदि प्राणी वर्ग के बंध चित्र का विचार भी कुछ ऐसा ही है । द्वीप, सागर, पल्या, लोक, अंक, नवमांक, सीमातीत, आदि गणित मिश्रण और जैन संप्रदाय के पूर्व वृतांत के बंध दिखाई देने के बावजूद इनके विन्यास बहुत ही अस्पष्ट है। अम्बु, परिचित शर बंध ही होगा अन्य सब कैसे हैं कौन जाने? सिरि भूवलय को, १ से लेकर ६४ तक के वर्णों को प्रतिनिधित्व करते हुए ९२ पृथक अंकों का प्रयोग कर उनके विविध शब्दात्मक संयोगों को अक्षर लिपि में परिवर्तित कर प्राप्त होने वाला, एक चित्र काव्य कह सकते हैं । विद्वानों के द्वारा अनादर सिरि भूवलय का रचना संविधान, उस संविधान में दिखाई पडने वाला कविकौशल, उस कौशल की अनन्यता और वस्तु विमर्शता, इन सबके विषय में कन्न भाषा साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा दिखाई जाने वाली उपेक्षा, निस्सहायता, आज के दशक में दीर्घावधि का इतिहास होगा। इस के लिए कुछ कारणों को सोचा जा सकता है-. १. ग्रंथ का स्वरूप, संविधान विलक्षण है। रचना का धर्म गणित के भाग पर आधारित होना, प्रथम परिष्करण के प्रकटन का असमग्र होना प्रकरण में अनुगमन (प्रयोग) किए हुए मुद्रण विधान भी वाचन और वस्तु ज्ञान के लिए अवरोध उत्पन्न करने के भाँति ही विलक्षण है। 126
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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