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________________ ( सिरि भूवलय वीरसेन प्रोक्त जयधवल व्याख्यान का थोडा बहुत जैन सिद्धांत को जैन भगवत गीता का और तीर्थंकर चरित का विवरण चमत्कारिक रूप से निरुपित करने का उद्देश्य रखने वाले कवि विमलांक-नवमांक पद्धति में अंकों का ही प्रयोग करने के कारण इनको लिपि बध्द करने के बाद भी रचना गणित को व्याप्ति में ही निर्वाह होने के कारण वस्तु ज्ञान व्यापक और स्पष्ट नहीं है। चमत्कार तो अद्भुत है लेकिन वक्त व्यार्थ अविदित रहकर कर साहित्य न बन कर सिद्धांत शास्त्र वाला यह ग्रंथ एक प्रकार का गणित-गुणित का क्लिष्ट विज्ञान ग्रंथ बन कर, साहित्य का सामान्य ज्ञान वालों के लिए दूरगाह्य और अरुचिकर बना हुआ है। इसमें साहित्य और गणित शास्त्र का सव्यसाची( सत्य तथ्य) समाहित होकर वक्तव्यार्थ को बाहर लाने तक इस ग्रंथ को जन प्रिय बनाना कष्ट कर ही है। गणित शास्त्र का, उसमें भी जैन गणित के मर्म को जानने वाले आधुनिक समय के गणक यंत्र की सहायता से इस के सिद्धांत विषयों को बहु भाषिक चमत्कारों को उजागर करने का कार्य अत्यावश्यक कार्य है। इस ग्रंथ के प्रकटण से ऐसे लोगों को आकर्षित करने में समर्थ हो तो प्रकाशक का प्रयत्न सार्थक होगा। भाषा कुमुदेन्दु द्वारा रचित सिरि भूवलय एक मध्य कन्नड भाषा की रचना है। सांगत्य, अनिर्दि, छंद बम्ध, पद्य पंक्तियाँ उस भाषा के वैलक्षणों (विशेषताओं) को लेकर ही रचित है। प्राचीन कन्नड के (प्राचीन कम्मडा) प्रस्ताव को लाने पर भी (१०-७५) वह औपचारिक है। हाडलु सुलभवादांग नोडलु मेच्चुव गणित (गीत की भाँति सरल और दृष्टि भावन गणित) कहना ही यहाँ ग्रंथ स्वरूप है (१०-७६-७७)। इस ग्रंथ के सामन्य भाषिक लक्षणों को क्रोडीकरण( संग्रह) कर सकते हैं। इस क्रोडीकरण के लिए अंकों का अनिबध्द रूप ही आधार है। १. व्यंजनांत शब्द स्वरांत बने हैं। २. छ-ळ ? र ध्वनियों के बीच अंतर न करते हुए प्रास स्थान में भी और अन्यत्र भी प्रयोग किया गया है। - 122
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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