SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय कुमुदेन्दु के स्थान के विषय में अभी तक कुछ विचार हुए हैं । सिरि भूवलय में कवि कर्नाटक के नंदी पहाड़ को आत्मीयता से याद करने के कारण (८-५५-६७) कुमदेन्दु शतक में उनको उअलवभू कुमुदेन्दो राज वद्रा जतेजम कहकर स्थल सूचित करने के करण भी (पृ. ४४) आप कोलार जिले के चिक्क बल्लापुर ताल्लुक के नंदी दुर्ग के समीप यलवळ्ळी नम के आज के ग्राम में वास करते थे ऐसा माना जाता है। चिन्नद नाडाद । इहके नंदीयु लिक पूज्य यह एक सुन्दर उक्ति है ( ८-५५) अर्थात कन्नड प्रदेश कोलार जिले के कारण स्वर्ण प्रदेश ही है । एस. श्री कंठ शास्त्री के सिरि कुमुद चंद्र मिणिका णिम्मवियंयलवभू मिमिणं कह कर उध्दरित कृति भाग से भी ( जैन भगवद गीता, संशोधन लेखन पृ३५७) हमारे ध्यान में आता है । इसी को विलोम क्रम में ग्रंथ नाम के रूप (यलवभू> भूवलय) में बनाया गया है, ऐसा विचार करते हैं। यहीं पर कवि कळवप्पु कोवलाल (पुर) तलकाड आदि को भी स्मरण करते हुए (८-७३) राष्ट्र कूट अमोघ वर्ष के शासनाधिकार के किसी तिरुळुगन्नड के प्रदेश को याने उत्तर कर्नाटक के प्रदेश का नाम न लेने के कारण आप दक्षिण कर्नाटक के हैं, कह सकते हैं । सिरि भूवल्य का आधार ग्रंथ षट्ट्खंडागम २४वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर जी के उपदेश वाणी को उनके प्रप्रमुख शिष्य इन्द्रहूत गौतम जी ने द्वादशांग श्रुत के रूप में संयोजित किया । उनका अध्ययन अनुसंधान आचार्य परंपरा में आगे बढता हुआ, फिर धीरे-धीरे कम होता हुआ धरसेनाचार्य तक आया। वे १२वें दृष्टि वादांग के अन्तर्गत ( समाहित) पूर्व में और पाँचवें व्याख्या प्रज्ञप्ति में कुछ-कुछ अंशों के पुष्प दंत और भूत बलि नाम के दो आचार्यों को पढवाया। ये दोनों आचार्य महावीर जी के निर्वाण के अनंतर में लगभग सातवें शताब्दी के समय सत्कर्या प्राभृत के ६००० सूत्रों को रचा। यह सूत्र संकलन ही षट्ट्खंडागम नाम का सिध्दांत ग्रंथ है। आगे इसी सूत्र ग्रंथ के टीकाओं को कुंद कुंद श्याम कुंद, तुंबलूचार्य, समंतभद्र, बप्प देव आदि कुछेक समय- समय पर रचते गए। अंतिम टीका के रचयेता अमोघवर्ष नृपतुंग के समय के वीरसेनाचार्य जी हैं, यही धवल टीका है। यह संस्कृत - प्राकृत भाषा मिश्रण की 117
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy