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________________ सिरि भूवलय के ऊपर वीरसेन से रचित जयधवला टीका के पहले २० हजार श्लोक भाग)। कर्म मीमांसा के बारे में भागों को आधारित कर, कन्नड भाषा में कुमुदेन्दु आचार्य अनुसिरद वाणिय दायवनरियुत निरुपित करते हैं, जान पडता है। इसके अलावा ७१८ भाषाओं के लिए उपयुक्त गणित के विनोद के लिए अवकाश देने के भाति वह निरुपण है ऐसा कवि अभिमान पूर्वक कहना भी, उस चमत्कार को स्वयं जहाँ-तहाँ विवरण करते हुए भी दिखाई देते हैं। (१०-७३) ___ कुमुदेन्दु स्वयं को वीरसेन के शिष्य कहते हैं । इसके लिए क्या समाधान है ? उस परंपरा से मिले हुए, परोक्ष रूप से शिष्यत्व को कहने वाले, अपने द्वारा रचिर सिध्दांत ग्रंथ के आधार ग्रंथ के कर्ता बने हुए, ऐसे अनेक अर्थों को समझा जा सकता है इतना ही नहीं वीरसेन को कुमुदेन्द नाम के एक शिष्य थे ऐसा मानने के लिए हमें कोई आधार नहीं है । अभी मिली जानकारीनुसार वीरसेन को पूर्व पुराण के जिनसेनाचार्य के भी मिलने के भाँति दशरथ गुरु और विनय सेन नाम के केवल तीन ही शिष्य थे । ऐसे ही राष्ट्र कूट के अमोघवर्ष नपतुंग को वीरसेन-जिनसेन गुरु थे ऐसा जान पडता है इतना ही नहीं कुमुदेन्दु नाम के एक गुरु भी थे मानने के ले कोई आधार नहीं मिलता है यह कल्याणमंदिर स्त्रोत्र के कर्ता कुमुद चंद्र तो है ही नहीं । कुमुदेन्दु शतक के आदि गद्य के प्रस्तावना में कुमुदेन्दु को उदय चंद्र के शिष्य के रूप में वासु पूज्य यति के प्रशिष्य के रूप में कहकर, यहाँ जिनसेन वीरसेन की प्रासक्ति ही दिखाई नही पडती है । यह उदयचंद्र भी कविराज मार्ग मे उक्त में से पूर्व कवियों के श्रेणी के उदय नाम के गद्य कवि भी एक ही हैं, ऐसा श्री कंठैय्या जी का मानना भी दुर्बल विचार है । उनके जानकारी के अनुसार वासु पूज्य यति उदत चंद्र यति कुमुदेन्दु के पिता- पितामहों और गुरु सभी १३ वीं सदी के मध्य भाग में रहे होंगे। ___कळवल्प्पु कोवलाल(पुर) तलेकाडू स्थानों को गुरु के गोट्टीगा(ग्वाला) बातों से सैगोट्ट शिवमार के (सु. सन् ८२५) प्रस्ताप के संदर्भ के कारण (६-११७२९, १७-१४४) सिरि भूवलय को नवें सदी के आदि भाग में अथवा और भी पहले समय काल में मिले हुए हैं ऐसा मानना भी सयुक्तिक नहीं है । प्राचीन स्थल
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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