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________________ (सिरि भूवलय - सृष्टि हुई है दिखा कर सौन्दरी को गणित अथवा संख्या शास्त्र विशारदे नाम की शाश्वत संपत्ति देते हैं । इस प्रकार सौन्दरी के अंक ही अक्षरों के और ब्राह्मी के अक्षर ही अंकों के बराबर होंगें ऐसा स्पष्ट कर, दोंनों पुत्रियों को दी गई शाश्वत संपत्ति एक ही वजन की है यह, अंकाक्षर लिपि में काव्य रचना की की साध्यता का विवरण करते हैं । इससे सौन्दरी को समधान और ब्राह्मी को संतोष मिलता है ।। सिरि भूवलय की तांत्रिक कहानी बहु भाषा समावेश की विशिष्टता हमें अचरच में डालें तो कवि कुमुदेन्दु का कन्नड अभिमान हमें आन्दानुभूति कराता है। वे कहते हैं जैन पुराण परि कल्पना के प्रकार उत्सर्पिणि और अवसर्पिणि दोनों समय काल में उदित हुए २४ जिन तीर्थंकर कर्नाटक के, और शुध्द कन्नडिगा ही थे। समवसरण मंटप के गंध कुटि के नडुवण (मध्य में) सहस्रदल पद्म पीठ के ऊपर चार अंगुल की ऊँचाई पर मंडित हुए तीर्थंकर स्वामी के मुख से कहे गए दिव्य वाणी को प्रकट करने की शक्ति कन्नड भाषा को है ऐसा अभिमान से कहते हैं । इतना ही नहीं आदि तीर्थंकर बने वृषभ स्वामी ब्राह्मी को दिए अक्षर लिपि कन्नड के हैं और सौन्दरी को दिए अंक लिपि भी कन्नड के ही हैं। कन्नड से ही व्यवहार में संवहन साधन भाषा की उत्पत्ति हुई है। वही भाषा साहित्य सृजन का कारण भी बनी। इसी प्रकार कन्नड के अंकों से ही कन्नड अंक लिपि का निर्माण होकर गणित शास्त्र के आविर्भाव का कारण हुई । इस कथन में सत्यांश चाहे कितना भी हो, कवि का कन्नडाभिमान सच में प्रशंसा के काबिल है। ___इतना कहने के लिए आप सब की सहनशीलता की परीक्षा ली है इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हैं। लेकिन फिर भी आखिर में मेरा एक कर्त्तव्य बनता है, वह है बुजुर्गों को, छोटो को, प्रेरकों को, अभिमानियों को, मेरी कृतज्ञता अर्पित करने का। मुझे अपना सहोदर जान कर आलिंगन कर, अपने प्यार की वर्षा कर, आज भी, हमेशा के लिए भी, अपने दोस्ती विश्वास का अमृत पान करा, अनिमित्त बंधु श्री वाय. के. मोहन जी को उनकी प्रिय बहु श्रीमती वंदना राम मोहन को, मैं परिषद का अध्यक्ष होने के समय ही, सिरि भूवलय की हस्त प्रति देकर प्रकाश दिखाने की चाह जगाने वाले आत्मीय श्री एम. वाय. धर्मपाल जी को, मित्र प्रभाकर चंडूर,
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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