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________________ (सिरि भूवलय प्रथम श्लोकाध्याय को समाप्त कर द्वितीय अध्याय को इस श्लोक से प्रारंभ करते हैं अथ व्यास मुनि द्रोप दृष्टि जयख्यानांतर गत गीता द्वितीयोध्याय॥ अ २२॥ कुमुदेन्दु प्रथम गोम्मट देव, भरत को कहे गए तत्वाशास्त्र का आदि-अनादि गीता को प्राकृत में कहा था । इस गीता को नेमि से कृष्ण ने प्राप्त कर उसे अर्जुन को कहा था उसी को नेमि से प्राप्त संस्कृत गीता को मागधी के सित्थण बोध माय गछे (अ॥१६ श्रेणी) इस रूप में भी ऋध्दि मंत्र रूप के नेमिदत्त गीता को ऋषि मंडल रूपी व्याख्यान में, सभी तत्व शास्त्रों को तत्वार्थ सूत्र में जोडा: (अंतर पद्य ४४-५०) येल्लरिगरीवंते केळेन्दु श्रेणिका । गुल्लासदिन्दा गौतमनु। सल्लीलेइन्दलि व्यासरु पेळ्दर। देल्ला अतीतद कथेय।। व्यास से लेकर गौतम गणधर ने श्रेणिक को कहे गए इस गीता को कुमुदेन्दु : (अंतर पद्य १७-९४-१००) ऋषि गळेल्लरु एरगुव तेरेदिन्दलि। ऋषि रूप धर कुमदेन्दु।। हसनाद मन दिन्दा अमोघ वर्षांकगे। हेसरोटु पेळ्द श्री गीते ॥ इस तरह कुमुदेन्दु स्वयं ऋषि बन श्री कृष्ण के स्थान को अलंकृत कर अर्जुन रूपी अमोघ वर्ष को कन्नड व्याख्यान रूपी भगवत गीता को विस्तृत रूप से वर्णन करते हैं । इस तरह भूवलय विश्व के अत्यंत महत्व रूपी आधार मूल से प्रारंभ हुआ है । इसका विवरण आगे देते हैं । भूवलय का रचना विधान वशवाद करमाटकदेनटु । रसभन गदकक्षरद सरव।। मुकतियोळिह सिदध जीवर तागुत। वयकतावयकत्वदागि।। सकलवु करमाटदणुरुउप होनदुत। परकटदे ओमदरोळ अडगि।। ६-३॥ 98
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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