SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1/13 The top to toe (Nakha-Shikha) description of Vāmādevī the supreme queen (Pattarāni) of the country. अइरूउ जाह वण्णइ ण कोवि रत्ततणु दरिसिउ कमयलेहिं गुप्फहिँ विप्फारिउ गूढ भाउ वटुल वि रोमंसि-रहिय जंघ जाणअ संदरिसिय णिबिडबंध सुललिय पवरोरु रइ-सुसार कडियल-पिहुलत्तणु अइ अउव्वु णव-णाइणि तणु सम रोमराइ णाही गंभीरत्तणु मणोज्जु पत्तलु वि पोटु पयडिय गुणोहु विमण-बलहरु तिवलि-भंगु तुंगत्तु होउ थोरत्थणाहँ भुव-जुउ मण्णमि पंच-सर-फासु णिय मइ-विलासु दर कहमि तो वि।। इयरह कह सरु मारइ सरेहि। इयरह कह सुरहँ वि चल-सहाउ।। इयरह कह मणझेंद्अ अलंघ।। इयरह कह णिवडहि जण मयंध।। इयरह कह कयलीयल असार।। इयरह कह जणुमेल्लइ सगबु ।। इयरह कह मुज्झइ विबुह जाइ।। इयरह कह जण मणि जणइ चोज्जु । इयरह कह सुर-णर-फणि-मुणोहु इयरह कह अइवग्गइ-अणंगु।। इयरह कह सिर चालणु जणाहँ।। इयरह कह बद्धउ जण सहासु।। 1/13 पट्टरानी वामादेवी का नख-शिख वर्णनवह वामादेवी इतनी रूपवती थी कि उसका यद्यपि कोई भी वर्णन नहीं कर सकता था, तो भी मैं अपनी (तुच्छ) बुद्धि के बिलास से अपने काव्य में उसका कुछ वर्णन करता हूँ। उस वामादेवी के चरण-तल में लालपना दिखाई देता था, यदि ऐसा न होता तो कामदेव अपने वाणों से (दर्शकों को) कैसे बेधता? गुल्फों ने अपना गूढभाग विस्तारित किया था, यदि ऐसा न होता, तो देवों का स्वभाव चंचल कैसे होता? उसकी जंघाएँ वर्तुलाकार (गोल) निर्लोम (-स्निग्ध) थीं, यदि ऐसा न होता तो कामदेव के लिए भी वे अलंघ्य कैसे होती? ___जानुओं (घुटनों) ने सघन-बन्ध दर्शाया था, यदि ऐसा न होता तो (उन्हें देखकर) लोग मदान्ध होकर कैसे टूट पड़ते? रति के लिए सारभूत विशाल उरु भाग अत्यन्त सुन्दर था, यदि ऐसा न होता, तो कदली-लता असार कैसे कहला पाती? उसके कटितल की पृथुलता अत्यन्त अपूर्व थी यदि ऐसा न होता तो रसिकजन अपना गर्व कैसे छोड़ते? उसकी रोमराजि नवीन नागिनी (बाल-नागिनी) के शरीर के समान थी, यदि ऐसा न होता, तो विबुध (देव) जन भी उस पर मोहित कैसे होते? उसकी नाभि की गम्भीरता मनोज्ञ थी, यदि ऐसा न होता तो लोगों के मन में आश्चर्य कैसे (उत्पन्न) होता? उसका पेट पतला होने पर भी गुण-समूह - त्रिवलियों को प्रकट करने वाला था, यदि ऐसा न होता तो वह देवों, मनुष्यों एवं नागकुमारों के मन को कैसे मोहित करता? उसकी त्रिवलियों की भंगिमा विशेष मन वालों (-मुनियों) के बल को भी हरने वाली थी, यदि ऐसा न होता तो उन्हें देखकर लोगों का सिर चंचल कैसे होता? उसकी दोनों भुजाओं को मैं कामदेव का पाश मानता हूँ, अन्यथा लोग उनमें बँधकर हर्ष का अनुभव कैसे करते? उत्तम रेखाओं से उसका प्रवर कन्धर (ग्रीवा) सुशोभित था, यदि ऐसा न होता तो शंख रोता हुआ क्यों स्थित रहता? पासणाहचरिउ :: 15
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy