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________________ नायिका के दर्शन, चेष्टा आदि से जाग उठती है । अतः नायिका श्रृंगार रस का प्रधान आलम्बनभूत कारण है और चेष्टा आदि गौण - उद्दीपक कारण है। महाकवि बुध श्रीधर ने प्रस्तुत पौराणिक महाकाव्य में आलम्बन और आश्रयमें होने वाले व्यापारों का सुन्दर अंकन किया है, जिससे रसोद्रेक में किसी प्रकार की न्यूनता नहीं आने पाई है। वीणा के घर्षण से जिस प्रकार तारों में झंकृति उत्पन्न होती है, उसी प्रकार हृदयग्राही राग-भावनाएँ काव्य के आवेष्टन में आवेष्टित होकर रस का संचार करती हैं। यों तो इस काव्य का अंगीरस शान्त है, पर श्रृंगार, वीर और रौद्र-रसों का भी सम्यक् परिपाक हुआ है महाकवि ने यवनराज के साथ युद्ध के लिए प्रस्थान, संग्राम में चमकती हुई तलवारें, लड़ते हुए वीरों की हुंकारें एवं योद्धाओं के शौर्य-वीर्य का सुन्दर जीता-जागता चित्र उपस्थित किया है ।' | पासणाहचरिउ का अंगीरस शान्त है, किन्तु शृंगार, वीर और रौद्र रसों का भी उसमें सम्यक् परिपाक हुआ है । कवि ने युद्ध के लिए प्रस्थान, संग्राम में चमचमाती तलवारों, लड़ते हुए वीरों की हुंकारों एवं योद्धाओं के शौर्य-वीर्य-वर्णनों आदि में वीर रस की सुन्दर उद्भावना की है। पार्श्व कुमार को उसके पिता राजा हयसेन जब युद्ध की भयंकरता समझाकर उन्हें युद्ध में न जाने की सलाह देते हैं, तब पार्श्व को देखिए, वे कितना वीरता - रससिंक्त उत्तर देते हैं— णहयलु तलु करेमि महि उप्परि पाय- पहारें गिरि-संचालमि इंदहो इंद-धणुह उदालमि कालहो कालत्तणु दरिसावमि अग्गिकुमारहो तेउ णिवारमि तेल्लोकु वि लीलएँ उच्चायामि तारा- णियरइँ गयणहो पाडमि हर-रायो गमणु णिरुभमि णीसेसु वि हयलु आसंघमि विज्जाहर-पय- पूरु वहावमि मयणहो माण मडप्फरु भंजमि दस मज्झु परक्कमु बालहो वाउ वि बंधमि जाइ ण चप्परि । णीरहिणीरु, णिहिलु पच्चालि । फणिरायहो सिरिसेहरु टालमि । धणवइ धण-धारा वरिसावमि । वारुण सुरु वरिसंतउ धारमि । करयल-जुअलें रवि-ससि छायमि । कूरग्गह-मंडलु णिद्धाडमि । दिक्करिहिं कुंभयलु णिसुंभमि । जायरुव धरणीहरु लंघमि ।। सूलालंकिय-करु संतावमि । भूअ - पिंसाय-सहासइँ गंजमि ।। उअरोहेण समुण्णय-भालहो । । पास. 3/15/1-12 श्रृंगार रस के भी जहाँ-तहाँ उदाहरण मिलते हैं। कवि ने नगर, वन, पर्वत नर एवं नारियों के सौन्दर्य का चित्रण किया है, किन्तु यह श्रृंगार रतिभाव को पुष्ट न कर विरक्ति को ही पुष्ट करता । माता वामादेवी के सौन्दर्य का वर्णन इसके लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । (दे. 1/13) कवि ने स्वतंत्र रूप से भी रौद्र रस का सुन्दर निरूपण किया है। राजा अरविन्द कमठ के दुराचार से खिन्न होकर क्रोधातुर हो जाता है और उसे भृत्यों द्वारा डॉट-फटकार कराने के बाद उसे देश से निकाल देता है । जइ जाइ पेक्खु ता सइँ जि मुक्खु भाउज्जहे वयणे णियइ जाम कोहाणल जालालिंगियंगु जंपंतउ भायर तणउ वित्तु जामि जेण जि अण्णाय रासि इउ भणिवि णिवेणाढत्त भिच्च 1. इसके लिए पा.च. की चौथी एवं पंचमी सन्धि दृष्टव्य । विट्ठउ सिंचिय अण्णा रुक्खु सहुँ भायरेण पिय दिट्टु ताम ।। गउ रायगेहु णं खय-पयंगु । । तं सुणिविणिवहो परिखुहिय चित्तु तेण जे मइँ सो परिहरिउ आसि । दुप्पिच्छ दच्छ दिढयर णिभिच्छ प्रस्तावना :: 59
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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