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________________ पार्श्वनाथ, जबकि मरुभूति के रूप में जन्म धारण किये हुए थे, अपने विरोधी कमठ को निर्दोष सिद्ध करते हैं। अपने निश्छल-स्वभाव के कारण कमठ के सहस्रों दोष भी उन्हें गुण ही प्रतीत होते हैं। सम्भवतः भाई का ऐसा अनुराग बहुत ही कम स्थलों पर देखने को मिलेगा। अपनी पत्नी के साथ दूसरे के द्वारा किये गये दुराचार को तिर्यंच भी सहन नहीं करते, फिर मनुष्यों की तो क्या बात ही क्या ? मरुभूति जैसा महान् व्यक्ति कमठ के द्वारा अपनी पत्नी के साथ दुराचार कर लिये जाने पर भी अपना भाई होने के कारण उसे क्षमा कर देता है। अतः इस संवाद द्वारा कवि ने स्वभावतः ही नायक के आदर्श चरित को चित्रित किया है। (2) बुध श्रीधर समकालीन राजनीति से भी सुपरिचित हैं। राजा अरविन्द प्रजापालक एवं न्यायनीति-परायण है। वह अपने राज्य में किसी भी प्रकार की अनीति को प्रश्रय नहीं देना चाहता। जब वह देखता है कि उसी के अमात्य मरुभूति की पत्नी के साथ उसका बड़ा भाई कमठ दुराचार कर लेता है, तो वह मर्यादा की रक्षा के हेतु सर्वप्रथम मरुभूति से ही यथार्थ जानकारी प्राप्त करता है। इससे ध्वनित होता है कि समाज के उत्पात एवं उपद्रवों का परिज्ञान राजा को अपने परम विश्वस्त एवं निकटवर्ती व्यक्तियों से ही प्राप्त होता था। (3) प्रबन्ध-काव्य के लिये यह आवश्यक है कि विभिन्न परिस्थितियों और वातावरणों में नायक का व्यक्तिगत परीक्षण किया जाय । बुध श्रीधर ने उक्त संवाद द्वारा नायक के चरित्र एवं कथावस्तु के मूलबीज को इस प्रकार स्थापित किया है, जिससे कि कथा बटवृक्ष की तरह उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होती जाती है। अतः प्रस्तुत संवाद में पर्याप्त स्वाभाविकता दृष्टिगोचर होती है। (4) प्रबन्ध-काव्य का चौथा तत्व भावाभिव्यंजना है। महाकवि ने प्रस्तुत काव्य में उक्त तत्व का सुन्दर समावेश किया है। पुराण-निरूपित कथानक होने पर भी उसके वर्णनों को इतना सरस बनाया गया है कि जिससे उसे पढ़ते ही हृदय की रागात्मक वृत्तियों में सिहरन उत्पन्न हो जाती है। मननशील प्राणों के आन्तरिक सत्य का आभास, जो कि जीवन के स्थूल-सत्य से भिन्न है, प्रकट हो जाता है और जीवन की अन्तश्चेतना तथा सौन्दर्य-भावना उबुद्ध होकर चिरन्तन सत्य की ओर अग्रसर करती है। बुध श्रीधर घटना-वर्णन, दृश्य-योजना, परिस्थिति-निर्माण और चरित्र-चित्रण में इतने अधिक नहीं उलझे है. जिनसे उनके भाव अस्पष्ट ही रह जावें। भाव, रस और अनुभूतियों को सर्वत्र ही अभिव्यंजित करने की उन्होंने सफल चेष्टा की है। बैर की परम्परा, प्राणी के अनेक जन्म-जन्मान्तरों तक किस प्रकार चलती है, और कौन-सी ऐसी भावनाएँ हैं, जो इस बैर को अचार और मुरब्बा बना कर कर्मबन्ध का सबल हेतु बना देती हैं ? तथ्य यह है कि जिस प्रकार अचार का मुरब्बा पुराना होने पर स्वादिष्ट मालूम पड़ता है, उसी प्रकार बैर भी पुरातन होने के बाद अनन्तानुबन्धी शत्रुता के रूप में परिणत हो जाता है और अनेक जन्म-जन्मान्तरों तक इसका फल भोगना पड़ता है। बुध श्रीधर ने पार्श्वनाथ के नौ भवों द्वारा एक ओर अहिंसा और जीवन-साधना का उत्कृष्ट उदाहरण उपस्थित किया है, तो दूसरी ओर हिंसा और कषायों के प्रचण्ड ताण्डव का। पार्श्वनाथ का जीव-मरुभूति, अहिंसा-संस्कृति का प्रतीक है, तो कमठ हिंसा-प्रधान संस्कृति का। दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि श्रमण एवं श्रमणेतर संस्कृतियों का संघर्ष ही प्रस्तुत काव्य का उदात्त-तत्व है, और इसी भाव-भूमि को कवि ने पार्श्वनाथ के चरित द्वारा अभिव्यक्त किया है। पौराणिक महाकाव्यत्व प्रस्तुत ‘पासणाहचरिउ' एक सफल पौराणिक महाकाव्य है। इसमें पौराणिक शलाका-महापुरुष–तीर्थंकर पार्श्व की कथावस्तु वर्णित है। पौराणिक महाकाव्य में अप्राकतिक और अलौकिक घटनाओं के साथ-साथ धर्मोपदेश, 1. पासणाह. 11/12 2. पासणाह 11/5-6 3. पासणाह. 11/11/7-8 54:: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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