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________________ अग्रसर कर प्रबन्ध निर्वाह में मर्मस्थल कर संचार किया है। यों तो उनके समस्त भवान्तरों की अवान्तर-कथाएँ ही मर्मस्थल है, जो मूल कथानक में रस- संचरण की क्षमता उत्पन्न करती हैं। अतः यह मानना तर्कसंगत है कि महाकवि ने प्रस्तुत चरित-काव्य में मर्मस्थलों की योजना स्पष्ट रूप में की है । वस्तु - व्यापार वर्णन यद्यपि वस्तु व्यापार-वर्णनों में कवि पौराणिकता की सीमा में ही आबद्ध है, तो भी अवसर आने पर नगर, वन, उषा, सन्ध्या, युद्ध, राज्य, सेना, पशु-पक्षी आदि वर्णनों में भी वह पीछे नहीं रहता । इन वर्णनों में कुछ ऐसे वर्णन भी है, जो घटनाओं में चमत्कार उत्पन्न करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो परिस्थितियों का निर्माण कर ही समाप्त हो जाते हैं। बुध श्रीधर काशी देश की वाणारसी नगरी का स्वाभाविक चित्रण करते हुए वहाँ के निवासियों एवं समृद्धि का ऐसा वर्णन करता है, जिससे प्रबन्धांश प्रबन्ध की अगली कड़ी को पूर्णतया जोड़ने में समर्थ होता है। परिस्थिति-निर्माण के लिये जिन वस्तुओं की योजना कवि ने की है, उनमें भगवान पार्श्वनाथ का जन्माभिषेक विशेष महत्वपूर्ण है। चतुर्जाति के देव एकत्र होकर उन्हें सुमेरु पर्वत पर ले जाते हैं तथा अत्यन्त उत्साहपूर्वक बड़े ही समारोह के साथ उनका जन्माभिषेक सम्पन्न करते हैं । यह जन्माभिषेक निम्न परिस्थितियों का निर्माण करता है— (1) तीर्थंकरत्व के पौराणिक अतिशयों और महिमाओं के प्रदर्शन द्वारा धीरोदात्त नायक के विराट और भव्य रूप का प्रस्तुतिकरण । पुराणकार इन पौराणिक सन्दर्भों को केवल महान व्यक्तियों के ईश्वरत्व या महत्त्व के प्रतिष्ठापन हेतु आयोजित करता हैं, पर काव्य- स्रष्टा, इन महत्वों द्वारा काव्योत्कर्ष के लिए धरातल का निर्माण करता है। जिस प्रकार कुशल कृषक भूमि को उर्वर बनाने के लिये खेत को गहराई पूर्वक जोतता है, उसी प्रकार काव्य-कला का मर्मज्ञ कवि पौराणिक अतिशयों को संचित कर काव्य के विराट फलक पर नवीन चित्रांकन का कार्य सम्पन्न करता है। अतएव स्वप्न-दर्शन, स्वप्न फल, तीर्थकर - जन्म और इसी प्रकार के अन्य पौराणिक अतिशय काव्य की ऐसी पृष्ठभूमि का निर्माण करते हैं, जिससे नायक का चरित्र उदात्त बनता है और रसोत्कर्ष भी वृद्धिंगत होता है । बुधश्रीधर ने अपने वस्तु व्यापारों द्वारा प्रस्तुत काव्य में अन्तर्द्वन्द्व, भावनाओं के घात-प्रतिघात एवं संवेदनाओं के गम्भीरतम् संचार को उत्पन्न किया है । कवि का सूक्ष्म पर्यवेक्षण वस्तुओं के चित्रण में सदा सतर्क रहा है। अतः संक्षेप में इतना ही कहा जा सकता है कि 'पासणाहचरिउ' के सीमित वस्तु व्यापार वर्णन भी काव्य को प्रबन्ध-पटुता से परिपूर्ण बनाते हैं। संवाद- तत्त्व काव्य-सौष्ठव के लिए संवाद-तत्त्व नितान्त आवश्यक हैं। जिस प्रकार व्यावहारिक जीवन में मनुष्य की बातचीत उसके चरित्र की मापदण्ड बनती है, उसी प्रकार पात्रों के कथनोपकथन, उनके चरित्र एवं क्रिया-कलापों को उद्भाषित करते हैं। मनुष्य की बाह्य आकृति एवं उसकी रूप सज्जा केवल इतना ही बतला सकती है कि अमुक व्यक्ति सम्पन्न है अथवा दरिद्र, किन्तु मनोभावों की गहरी छानबीन संवाद या वार्तालापों के द्वारा ही संभव है। कर्मठता, अकर्मण्यता, उदारता, त्याग, साधुता, दुष्टता, दया, प्रेम एवं ममता आदि वृत्तियों एवं भावनाओं की यथार्थ जानकारी संवादों से ही सम्भव है । बुध श्रीधर ने प्रस्तुत चरित-काव्य में अनेक वर्ग और जातियों के पात्रों का समावेश कर उनके वार्तालापों के द्वारा जातिगत विशेषताओं एवं उनके विभिन्न मनोवेगों का सुन्दर विवेचन किया है। उन संवादों को निम्न श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं (1) श्रृंखलाबद्ध संवाद, एवं ( 2 ) उन्मुक्तक संवाद | श्रृंखलाबद्ध - संवाद वे हैं, जो प्रस्तुत चरित-काव्य में कुछ समय तक धाराप्रवाह रूप में चलते रहते हैं । यद्यपि 1. पासणाह. 2/7 50 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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