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________________ नाटक-संगीत-मण्डली, युद्धदृश्य आदि-आदि के मनोहारी दृश्य अवश्य ही चित्रित कराए गये होंगे, और जब कुशल कारीगर, चित्रकार आदि दिन-रात कार्य करते-करते थक जाते होंगे, तब साहू नट्टल अपनी धर्मपत्नी के साथ उनका उत्साह बढ़ाने के लिए वीरवर चामुण्डराय, विमलशाह एवं वस्तुपाल-तेजपाल के समान ही उनके पास पहुँचते रहते होंगे और नाना-प्रकार से उन्हें प्रोत्साहित करते रहे होंगे। उत्तर एवं दक्षिण भारत में प्रचुर मात्रा में इतने विशाल एवं प्रचुर मात्रा में उत्तुंग एवं कलापूर्ण जिनमन्दिरों, मूर्तियों का निर्माण तथा विविध विषयक साहित्य-लेखन क्यों किया गया? इसका एक अतिसंक्षिप्त उत्तर यही दिया जा सकता है कि विदेशी आक्रान्ताओं एवं अन्य ईर्ष्यालओं एवं विदेषियों द्वारा श्रमण-संस्कति की कलापर्ण धरोहरों त को जिस प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट एवं क्षतिग्रस्त किया गया था, उसकी क्षति-पर्ति हेत ही समाज में वह एक बहआयामी साहसपूर्ण निर्भीक नव-निर्माण एवं जागरण का रचनात्मक कार्यक्रम था, जो समय की बलवती माँग भी थी। उक्त जिनालय की अवस्थिति (Location) नटल साहू द्वारा निर्मित उक्त नाभेय-मन्दिर का प्रांगण दिल्ली का वही प्रक्षेत्र था, जो आज महरौली (मेर्वावली) के नाम से प्रसिद्ध है। वस्तुतः 11वीं-12वीं सदी की दिल्ली इसी प्रक्षेत्र में बसी थी। तोमरवंशी राजा अनंगपाल (तृतीय) के पूर्वजों ने वास्तुशास्त्रीय दृष्टिकोण से शुभ-मुहूर्त में उसे यहाँ बसाया था। बहुत सम्भव है कि वर्तमान में महरौली या मेर्वावली में जिस स्थल पर आज अहिंसा-स्थली बनी हुई हैं, उसी स्थल के आसपास साहू नट्टल का नाभेय-मन्दिर बनवाया गया हो और पूर्वागत परम्परा को ध्यान में रखते हुए दिल्ली की जैन समाज ने उसी को केन्द्र बिन्दु बनाकर आधुनिक अहिंसा-स्थली का निर्माण कराया हो? वस्तुतः यह एक अन्वेषणीय विषय है। ___ जहाँ नट्टल का जिनालय बना, वह भूमिखण्ड, सम्भवतः धर्मायतनों के लिये ही सुनिश्चित था। वहीं पर अनंगसरोवर भी था, इतिहासकारों के अनुसार 40 फुट गहरा, 169 फुट लम्बा तथा 162 फुट चौडा था। वह अलाउद्दीन खिलजी (सन् 1259-1316) के समय तक पूर्णतया जल-प्रपूरित था। उसी के एक किनारे नट्टल ने उक्त जिनालय भी बनवाया था। कहा जाता है कि उस समय उसके आसपास कुछ जैनेतर धर्मायतन भी थे और वह प्रक्षेत्र सर्वधर्मसमन्वय का एक अदभुत उदाहरण बना हुआ था। इतिहासकारों की मान्यता है कि उक्त सरोवर एवं धर्मायतनों के समीप ही राजा अनंपाल का राजप्रसाद भी था। इतिहासकारों के सर्वेक्षण के अनुसार अनंग-सरोवर एवं राजप्रासाद के मध्य में एक लौह-स्तम्भ भी स्थापित किया गया था और उसके दक्षिण-पश्चिम में एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण कराया गया था, जिसका प्रवेश-द्वार मन्दिर की ओर उत्तर-मुखी रखा गया था।' पासणाहचरिउ में वर्णित समकालीन कुछ ऐतिहासिक झाँकियाँ ___'पासणाहचरिउ' यद्यपि एक पौराणिक-महाकाव्य है, उसमें पौराणिक इतिवृत्त तथा दैवी-चमत्कार आदि प्रसंगों की कमी नहीं। फिर भी चूँकि कवि बुध श्रीधर का युग संक्रमणकालीन था। कामिनी एवं कांचन के लालची मुहम्मदगोरी (1173-1206 ई.) के आक्रमण प्रारम्भ हो चुके थे, उसकी विनाशकारी लूट-पाट ने उत्तर-भारत में हड़कम्प मचा दिया था। हिन्दू राजाओं में पारपरिक फूट के कारण उनमें भी पारस्परिक कलह मची हुई थी। दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल को अपनी सुरक्षा हेतु कई युद्ध करने पड़े थे। कवि ने जिस हम्मीर वीर को अनंगपाल द्वारा पराजित किए जाने की चर्चा की है, वह घटना कवि की आँखों देखी रही होगी। कवि ने कुमार पार्श्व के यवनराज के साथ तथा त्रिपृष्ठ के हयग्रीव के साथ जैसे क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित युद्ध-वर्णन किए हैं, वे वस्तुतः कल्पना-प्रसूत नहीं, 1. दे. दिल्ली के तोमर, पृ. 158 2. पास. 4/6-21 3. बुध श्रीधर कृत वड्ढ. 5/11-13 44 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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