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________________ जालंधर (देश)-2/18/11 हम्मीर-वीर-1/4/2 कीर-देश-1/8/9 युद्ध-प्रसंगों में किया है। उनके नाम इस प्रकार हैंतोमर (4/9/9), करवाल (4/8/1), खुरपा (4/9/12), भाला (4/9/3), गदा (4/10/1), कुन्त (4/8/8), दण्डा (4/13/14), खड्ग (4/8/8), चक्र (4/8/10), प्रहरणास्त्र (4/16/7), मुग्दर (4/9/9), त्रिशूल (5/6/15), धनुष-बाण (4/9/2), महात्रिशूल (5/10/12), जूता (4/9/10), असिपुत्री (कटार) (5/15/18), भल्ली (छुरी) (4/9/6)। आदि पार्श्व के जन्मावसर पर जालन्धर-नरेश राजा हयसेन को बधाई देने हेत उनकी राज्य सभा में आये थे। प्राचीनकाल में यह एक समृद्ध राज्य था, जो त्रिगर्त देश के नाम से प्रसिद्ध था। इसकी सीमा पूर्व में मण्डी और सुखेत तथा पश्चिम में शतद्र तक विस्तृत थी। हिमालय की तराई का सम्भवतः वह पराक्रमी शासक, जिसे दिल्ली के तोमर शासक अनंगपाल ने बुरी तरह पराजित किया था और इसी विजय के उपलक्ष्य में उसने दिल्ली में एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण कराया था। बुध श्रीधर ने इसका कड़वक संख्या 1/4 में रोचक वर्णन किया है। वर्तमान काँगड़ा प्रक्षेत्र का पुरातन नाम। इतिहासकारों के अनुसार नवमी सदी में पालवंशी राजा धर्मपाल ने वहाँ के राजा को पराजित कर कान्यकुब्ज में आयोजित अपने राजदरबार में उसे उपहारों को लेकर उपस्थित रहने का आदेश दिया था। बुद्धकालीन सोलह जनपदों में से एक प्रमुख जनपद। इसकी राजधानी अयोध्या थी, जिसे साकेत भी कहा जाता था। परवर्ती कालों में इसका भौगोलिक विस्तार हुआ और वह उत्तर-कोसल एवं दक्षिण-कोसल में विभक्त हो गया। इतिहासकारों की खोजों के अनुसार पश्चिमी भारत की माही तथा किम नदियों के मध्य का प्रदेश लाड देश के नाम से विख्यात था। कुछ विद्वान् इसे गुजरात का ही अपरनाम मानते हैं। जैन-साहित्य में इसका उल्लेख प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। स्थिरवार-शनिवार। आचार्य समन्तभद्र के अनुसार आठ प्रकार के मद निम्न प्रकार हैं- (1) कुलमद, (2) जातिमद, (3) रूपमद, (4) ज्ञानमद, (5) धनमद, (6) बलमद, (7) तपमद एवं (8) अधिकार मद । (रत्नकरण्डश्रावकाचार 25)। गन्ना अथवा ईख। बुन्देली में इसे पौंडा कहा जाता है। गुलगुला-गुड़ के बने हुए पकौड़े। बुन्देलखण्ड में आज भी गुलगुला बड़े चाव से खाया जाता है। पार्श्व के हाथियों को रण-प्रयाण के समय भर पेट गुलगुला खिलाये जा रहे थे। कोसल-2/18/9 लाड-2/18/9 थिरवारु-2/4/3 अट्ठमय (अष्टमद)-10/10/7 पुंडच्छ-1/11/7 गुलगुल-4/1/10 270 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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