SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 10 12/5 The elephant abandoning all worldly attachments, dies in austerity and takes birth as Indra in the heaven named after Sahasrara-Deva. तहिँ अवसर णविय मुणीसरेण -झा विरइवि पाण- चाउ वरुणा करिणि वि संजाय तित्थु जिणवय-बेलेण करिवरु सुहाइँ कुक्कुड-भुअंगु पावेण बद्ध पंचत्तु लप्पिणु तक्खणेण पंचविदुक्खु तहिँ सहइ भीमु इत्थु जे जंबुदीवर विसालि सुरसिहरि सुरदिसि सरि विहत्तु तत्थत्थि सुकच्छउ - विजउ रम्मु लइयउ सण्णासु करीसरेण । । सहसारकप्पि हुउ अमरराउ ।। तो देवि महासुहु होइ जेत्थु ।। सुरहरि भुंजइ दारिय- दुहाइँ । । जंतहि दिवसहिँ गरुडेण खद्ध ।। पंचमि रउरवे जायउ कमेण । । अणवरउ रडंतउ विगय-सीमु ।। पडु-पडह-भेरि-झल्लरि-रवालि ।। परिणिवसइ पुव्व- विदेह खित्तु ।। सयलंगिवग्ग पविइण्ण सम्मु || घत्ता - तहो जो पडिबद्धउ ससिव विसुद्धउ णामेण वि खयरायलु । सेव दीहंगउ फुसिय पयंगउ दरिसिय पवर सिलायलु ।। 214 ।। 12/5 गजराज ने संन्यास धारण कर शुभ ध्यान पूर्वक देहत्याग किया और सहस्रार-स्वर्ग में देवेन्द्र हुआ उस अवसर पर मुनीश्वरों को नमस्कार कर गजराज ने संन्यास ले लिया, शुभ-ध्यान धारण कर प्राण त्याग किया और सहस्रार-कल्प (स्वर्ग) में देवेन्द्र हुआ । वरुणा नामकी वह हथिनी भी मरकर महान् सुख वाले उसी स्वर्ग में उसकी देवी हुई। इस प्रकार गजराज का वह जीव जिन-व्रतों के प्रभाव से दुखों से विहीन स्वर्ग के सुखों का भोग करने लगा। ( और इधर-) पापों से बँधा हुआ वह कुक्कुट सर्प कुछ दिनों के बीतने पर गरुड द्वारा खा डाला गया और तत्काल ही मृत्यु प्राप्त कर उसने पाँचवें सैरव नरक में जन्म लिया, जहाँ वह निरन्तर ही असीम रडता-विलाप करता हुआ पाँच प्रकार के भयंकर दुखों को सहता रहा । पट-पटह, भेरि एवं झल्लरी जैसे वाद्यों के मधुर संगीत वाले इस विशाल जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरु पर्वत की पूर्व-दिशा में (सीता-) नदी से विभक्त पूर्व- विदेह - क्षेत्र स्थित है, जिसमें सुकच्छ - विजय नामका एक सुरम्य देश है, जो समस्त देहधारियों के लिये सुख प्रदान करने वाला है। घत्ता- उस देश के बीच में पड़ा हुआ चन्द्रमा के समान खचराचल - • विजयार्ध (विद्याधरों का निवास वैताढ्य ) पर्वत है, जो शेषनाग के सामन दीर्घ अंग वाला, सूरज का स्पर्श करने वाला और जहाँ बड़ी-बड़ी शिलाएँ दिखाई देती हैं ।। 214 ।। 1. मूल प्रति में- हलेण पासणाहचरिउ :: 247
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy