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________________ 11/21 The importance of the charity of pious food (Āhāradāna), useful medicines (Auşadhidāna) and protection to frightened (Abhayadāna). धम्मत्थ-काम-मुक्खहँ वि सारु जीवेव्वउ सव्व जणाहँ चारु।। विणु जीविएण णाणाविहाइँ को अणुहवेवि इंदिय-सुहाइँ ।। जें दिण्णउ जीवहुँ जीवियब्बु तें दिण्णउ मणचिंतियउ सव्वु ।। णाभयदाणहो महि अण्णु दाणु गयणहो ण अण्णु णिम्मलु वियाणु।। तेण जि दिज्जइ अणुकंपदाणु सुहयरु परिरक्खिय पाणि पाणु ।। आहार बिणु जीविउ ण ठाइ हिम-हय-कमलवणु व तणु ण भाइ।। आहार सिरि-मइ-गइ हवेइ रइ कति कित्ति सुइ जिणु चवेइ।। आहार-दाणु पविइण्णु जेण महियलि भणु किं किं ण दिण्णु तेण।। आहार कीरइ धम्मु जेण दिज्जइ मुणीहुँ आहारु तेण।। तउ करेवि ण सक्कइ चिरु सरोउ मुणि जेण तेण किज्जइ विरोउ।। फासुअ ओसह वर दाणु देवि भत्तिए सिरेण मुणिपय णवेवि।। बिणु देहें धम्मु ण होइ जेम धम्म बिणु सोक्खु ण होइ तेम।। घत्ता- इय स-मणि मुणेप्पिणु विणउ करेविणु भविय-सरोय दिणिंदहं । अणवरउ स-सत्तिए दिज्जइ भत्तिए ओसहदाणु मुणिंदहं ।। 205 ।। 11/21 अभयदान, आहारदान एवं औषधिदान का महत्त्वधर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष रूप चार प्रकार के पुरुषार्थ ही जीवितव्य के सार हैं, जो सभीजनों के लिये चारु सुन्दर लगते हैं। जीवितव्य के बिना नाना प्रकार के इन्द्रिय-सुखों का कौन अनुभव कर सकता है? अतः जिन्होंने जीवों को जीवन-दान दिया, उन्होंने मनचिन्तित सभी कुछ दे दिया। पृथिवी पर अभयदान से बढ़कर अन्य कोई दान नहीं। जिस प्रकार कोई भी द्रव्य आकाश से विशाल एवं निर्मल नहीं है, उसी प्रकार प्राणियों के प्राणों की सुरक्षा भी महान् सुखकारी एवं उत्तम जानो। इस कारण सभी को अनुकम्पा-दान देना चाहिए। आहार के बिना जीवन-प्राण नहीं ठहर सकता। उसके बिना यह शरीर हिम-तुषार से आहत कमल-वन के समान सुशोभित नहीं होता। आहार से ही श्री, मति एवं गति होती है और रति, कान्ति, कीर्ति और सुख होता है, ऐसा जिनेन्द्र ने कहा है। जिसने भी आहारदान दिया है, कहो कि पृथिवी तल पर उसने क्या-क्या दान नहीं किया अर्थात् सब कुछ दिया। क्योंकि आहार से ही धर्म किया जाता है। अतः मुनिवरों को आहार-दान दिया जाना चाहिए। रोगी-मुनि चिरकाल तक तपस्या नहीं कर सकता, अतः जैसे भी हो उसे निरोगी बनाना चाहिए। उसके चरणों में भक्ति-पूर्वक सिर नवाकर उसे अनुकूल प्राशुक औषधिदान देना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार देह के बिना धर्म नहीं हो सकता, उसी प्रकार धर्म के बिना सुख नहीं मिल सकता। घत्ता- इस प्रकार अपने मन में जानकर अनुनय-विनय करके भव्य रूपी कमलों के लिये सूर्य के समान मुनिवरों के लिये अपनी शक्ति एवं भक्ति पूर्वक निरन्तर ही औषधिदान देना चाहिए।। 205 ।। पासणाहचरिउ :: 237
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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